जांजगीर-चांपा: कोरोना वायरस संक्रमण ने सुपोषण की रफ्तार को रोक दिया है. हांलाकि जिले में आंकड़ें सकारात्मक हैं. लेकिन कुपोषण के आंकड़ों के सामने यह लय धीमी दिखाई पड़ रही है. राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान के तहत कुपोषण की दर में काफी कमी भी आई है. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से मार्च के बाद से बंद किए गए आंगनबाड़ी केंद्रों के कारण सुपोषण की रफ्तार रुक गई है.
जांजगीर-चांपा जिले में लॉकडाउन की वजह से 22 सौ से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र बंद हैं. राज्य सरकार ने फिर से आंगनबाड़ी केंद्रों को खोलने के निर्देश दिए हैं. महिलाओं को गर्म भोजन और बच्चों को सुपोषित आहार परोसने की तैयारी की जा चुकी है. प्रशासन का दावा है कि बच्चों के पालकों में कोरोना का भय दूर करने प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है. 22 मार्च के बाद प्रदेश भर में किए गए लॉकडाउन में राज्य सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों को भी बंद करने के निर्देश जारी किए थे. जिसके बाद महिला एवं बाल विकास विभाग ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को सुखा राशन घर-घर तक पहुंचाने का दावा किया. लेकिन लॉकडाउन की वजह से सूखा राशन वितरण की सही मॉनिटरिंग नहीं हो पाने की वजह से सुपोषण की दर धीमी है.
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क्या कहते हैं आंकड़ें
जिला प्रशासन के जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 में 24 हजार कुपोषित बच्चे पाए गए थे. साल 2019 में वजन त्योहार मनाया गया था. इस दौरान 0 से 5 वर्ष के बच्चों का तौल कराया गया. 24 हजार 396 बच्चों की पहचान कुपोषित के रूप में हुई. कुपोषण से सुपोषण की ओर बढ़ने के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान को तेजी से लागू किया गया. लेकिन सुपोषण के जो आंकड़ें सामने आए हैं. वो अभियान के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करते हैं. 24 हजार 396 बच्चों में से मात्र 4 हजार 396 बच्चे ही सुपोषित हो सके हैं. लॉकडाउन को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है.