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छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार छेरछेरा, युवाओं की टोली का डंडा नाच

अन्न दान का महापर्व 'छेरछेरा' की तैयारी में जांजगीर जिले के जवान और किसान जुट गए हैं. यह परंपरा हर साल पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस दिन दान करने से घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं पड़ती. ऐसा कहा जाता है.

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डंडा नाच करते युवा

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Published : Jan 16, 2022, 10:12 PM IST

जांजगीर चांपा: अन्न दान का महापर्व 'छेरछेरा' की तैयारी में जांजगीर जिले के जवान और किसान जुट गए हैं. छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार छेरछेरा सोमवार को मनाया जाएगा. सोमवार सुबह से ही गांव-गांव और गली-गली में बच्चों और युवकों की दर्जनों टोलियां एक-एक कर घरों में दस्तक देकर यह कहते मिल जाएंगे..छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेरते हेरा.. छोटे-छोटे बच्चों की टोलियां घर घर से धान और चावल का दान लेते हैं.

छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार छेरछेरा

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छेरछेरा, पुन्नी त्योहार क्या है ?

छत्तीसगढ़ की किसानी परंपरा में खरीफ फसल में धान उत्पादन को विशेष दर्जा दिया गया है. पहले धान की कटाई और खेत खलिहान से एकत्र कर धान मिजाई और उसे संग्रहित करने के लिए कोठी में रखते थे, लेकिन अब समय बदलने लगा है. किसान धान को खलिहान से सीधे मंडी ले जाकर समर्थन मूल्य में बेच देते हैं. लेकिन अपनी परंपरा को निभाते हुए किसान आज भी इस दिन अपने घर आने वालो को धान का ही दान करते रहे हैं. धान का दान मांगने के लिए युवाओं की टोली भी गांव में निकलती है जो मांदर, झांझर और मंजीरा के साथ हाथों में डंडा लेकर गीत के धुन में थिरक रहे हैं. लोगों से मिले दान से अपने गाजा बाजा की मरम्मत कराते है और कुछ तो सामाजिक,धार्मिक कार्यों में दान को न्योछावर कर देते हैं.

इसके पीछे की कहानी

छेरछेरा पुन्नी के नाम से जाना-जाने वाला यह त्यौहार, हर साल पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घर में कभी भी अनाज की कमी नहीं पड़ती. ऐसा कहा जाता है कि राजा बलि की कीर्ति और दान को देख कर देवता भी डर गए और भगवान विष्णु ने बामन अवतार लेकर इसी दिन राजा बलि के दरबार में भिक्षा मांगने गए. राजा बलि ने बामन अवतार लिए भगवान विष्णु को तीन पग दान देकर अपना सब कुछ सौंप दिया था. भगवान विष्णु ने उन्हें अपने चरणों में स्थान दिया था.

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