जांजगीर-चांपा:छत्तीसगढ़ सहित जांजगीर-चांपा के गांव-गांव में छेरछेरा महापर्व बनाया जा रहा है. दान का यह पर्व हर वर्ग के लोग बड़े उत्साह से मना रहे हैं.छत्तीसगढ़ में धान का विशेष महत्व है, इसके लिए अलग-अलग किवदंती है, जिसके आधार पर यह छेरछेरा त्योहार मनाया जाता है. दान की महत्ता से छत्तीसगढ़ का जनमानस भली-भांति परिचित है. पौराणिक पात्र राजा मोरध्वज दानी की कथा छत्तीसगढ़ से जुड़ी हुई है. जिन्होंने अपने वचन के पालन के लिए पुत्र ताम्रध्वज के अंगों को आरे से काट दिया और भूखे शेर के सामने परोस दिया था. मोरध्वज की राजधानी छत्तीसगढ़ में ही थी. विरासत में मिली दानशीलता की यह परंपरा लोगों के जीवन में व्याप्त है. दान कि यह लोक परंपरा अन्नदान के रूप में गांव-गांव में प्रचलित है, जिसे छेरछेरा कहा जाता है.
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अन्नदान का महापर्व छेर-छेरा पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. प्रत्येक पर्व के पीछे लोक कल्याण की भावना छिपी रहती है. लोक कल्याण की इसी भावना के कारण लोक पर्वों का स्वरूप व्यापक बन पड़ता है.छेरछेरा मनाए जाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में ही दिखाई देती है. यह सद्भाव और सामाजिक सौहार्द का लोक पर्व है. गांव के सभी जन, बच्चे, वृद्ध, महिला पुरुष याचक के रूप में अन्न मांगते हैं और गृह स्वामी या गृह स्वामिनी उदारता के साथ अन्न का दान करते है. गांव में छेरछेरा की गूंज इस तरह सुनाई पड़ती है.
छेरी के छेरा छेर-छेरा, बरकतीन छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेरते हेरा