बस्तर: जगदलपुर शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुसपाल पंचायत के पाडेरपानी पारा के ग्रामीण पिछले कई सालों से विकास की राह तक रहे हैं. आजादी के 7 दशक बाद भी पाडेरपानी पारा गांव में कुछ नहीं बदला. कहते हैं विकास की राह सड़क से होकर गुज़रती है. किसी गांव की सड़क उस गांव के विकास का पैमाना होती है, लेकिन बस्तर के इस गांव में सड़क कभी पहुंची ही नहीं. गांव में लोगों और उनके मिट्टी के घरों को देखकर ऐसा लगता है जैसे हुक्मरानों ने इस गांव को अपने विकास के नक्शे से ही गायब कर दिया है. इस गांव में परेशानियों का अंबार है.
एक भी शौचालय नहीं
गांव के लोग आज भी शौच के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं. स्वच्छ भारत मिशन के तहत यहां शौचालय बनना शुरू तो हुआ, लेकिन पूरा नहीं हो सका. शौचालय 3 साल से अधूरे हैं. उसकी टंकी दोबारा मिट्टी से भर चुकी है. प्रशासन ने इस अधूरे शौचालय के पैसे नहीं दिए हैं. ऐसे में शौचालय के कामगार इनसे पैसे मांग रहे हैं. शौचालय पूरा बना ही नहीं है. ऊपर से इन पर कर्ज अलग चढ़ गया है.
पीने का पानी नहीं
पाडेरपानी गांव के 20 परिवार सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से कुएं या बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी का दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. झिरिया का पानी पीने से कुछ ग्रामीण बीमार पड़ चुके हैं. वहीं कुछ गांववालों की डायरिया, मलेरिया जैसी गंभीर बीमारी से मौत भी हो चुकी है.