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SPECIAL: संकट में बस्तर दशहरा, रथ के लिए लकड़ी नहीं देने की जिद पर अड़े ग्रामीण - रथ निर्माण के लिए नहीं मिल रही लकड़ियां

बस्तर में 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है. जो पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है. इस दशहरा में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र लकड़ी का रथ होता है. जिसपर 600 साल बाद ग्रहण लगते दिख रहा है. कहा जा रहा है, ग्रामीणों ने ग्राम सभा कर यह फैसला लिया है कि इस बार रथ निर्माण के लिए उनके गांव के आसपास के जंगलों से वे लकड़ियां काटने नहीं देंगे. आखिर क्या वजह है जो यहां के लोग अपनी 600 साल पुरानी परंपरा को भी खत्म करना चाह रहे हैं. देखिये विशेष रिपोर्ट...

world famous Bastar Dussehra
संकट में बस्तर दशहरा

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Published : Sep 15, 2020, 5:50 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर:विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में आकर्षण का केंद्र रथ पर संकट के बादल छा गए हैं. 600 साल से अबतक जिस गांव से इस रथ निर्माण के लिए लकड़ियां लाई जाती थी, वहां के ग्रामीणों ने इस साल लकड़ी देने से इंकार कर दिया है.

600 साल पुरानी परंपरा ग्रहण

ग्रामीणों ने घटते जंगल के इलाकों पर अपनी चिंता जाहिर की है. ग्रामीणों ने ग्राम सभा में निर्णय लिया है कि जंगलों को बचाने के लिए वे अपने जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने देंगे.

ग्रामीणों के इस फैसले के बाद बस्तर में राजनीति गरमाई हुई है. एक तरफ जहां बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष और सांसद इन ग्रामीणों को मनाने की कोशिश में लगे हुए हैं. वहीं दूसरी ओर भाजपा के पूर्व मंत्री केदार कश्यप के ग्रामीणों के इस फैसले को सही ठहराते हुए शासन को किसी अन्य जगह से रथ निर्माण के लिए लकड़ियों की व्यवस्था करने की बात कही है.

बस्तर में हर साल 75 दिनों का दशहरा मनाया जाता है जो विश्व प्रसिद्ध है. इस दशहरा पर्व में कई महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है जो आकर्षण का केंद्र होती है, पर सबसे ज्यादा आकर्षित करता है दशहरे में परिक्रमा करने वाला विशालकाय 8 चक्कों का लकड़ी का रथ. इस रथ के परिक्रमा करने से लेकर निर्माण तक की अनूठी कहानी है. कहा जाता है कि बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव को जगन्नाथ की यात्रा के दौरान 16 चक्कों का रथ देकर उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी. रथ के निर्माण के लिए बेड़ाउमर गांव और दुबे उमर गांव से कारीगर आते हैं. इसके साथ ही रथ के निर्माण के लिए दरक्षा क्षेत्र के लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. बस्तर कि ये परंपरा 600 साल पुरानी है.

जंगलों से लकड़ी काटने पर मनाही

इस साल बस्तर दशहरे को लेकर कई परेशानियां आ रही है. बस्तर दशहरे पर पहली समस्या कोरोना महामारी की है. जिसकी वजह से दशहरे में जुटने वाली भीड़ में निश्चित तौर पर कमी देखी जाएगी. जो कि फिलहाल सबसे बड़ी समस्या है. वहीं इस बार ग्रामीणों ने ग्राम सभा कर यह फैसला लिया है कि इस बार रथ निर्माण के लिए उनके गांव के आसपास के जंगलों से लकड़ियां नहीं काटने दिया जाएगा.

इस मामले में बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार संजीव पचौरी का कहना है कि आदिवासी बाहूल्य क्षेत्र बस्तर के लोगों का पूरा जीवन वनों पर अधारित होता है. आदिवासियों के लिए उनके जल, जंगल और जमीन का विशेष महत्तव होता है. हर साल लकड़ियों के काटे जाने जंगलों को काफी नुकसान हो रहा है और जंगल खाली हो रहे हैं. ग्रामीणों की यह सोच जायज है. उन्होंंने कहा के नाम पर पिछले 600 साल से परंपरा के नाम पर एक ही क्षेत्र से लकड़ियां काटकर लाई जा रही है और हर साल 40 से अधिक पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है. ऐसे में ग्रामीणों की जागरूकता काबिले तारीफ है. उन्होंने कहा किन शासन को कही ओर से रथ निर्माण के लिए लकड़ियों की व्यवस्था करनी चाहिए.

बस्तर दशहरे से जुड़ी रोचक जानकारी-
दशहरे के दौरान पूरा देश जहां रावणदहन कर विजयादशमी का पर्व मनाता है, वहीं इन सबसे अलग कभी रावण की नगरी रहे बस्तर में आज भी रावणदहन नहीं किया जाता है.

पहली रस्म-

  • बस्तर में एतिहासिक विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व की पहली और मुख्य रस्म पाटजात्रा होती है, हरियाली के अमावस्या के दिन यह रस्म अदायगी के साथ बस्तर में दशहरा पर्व की शुरुआत होती है.
  • परंपरा के मुताबिक इस रस्म में बिंरिगपाल गांव से दशहरा पर्व के रथ निर्माण के लिए लकड़ी लाई जाती है, जिससे रथ के चक्के का निर्माण किया जाता है.
  • हरियाली के दिन विधि विधान से पूजा के बाद इसी लकड़ी से विशाल रथ का निर्माण किया जाता है.

पढ़ें: SPECIAL: शुरू हुआ दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला लोकपर्व बस्तर दशहरा, निभाई गई पाट जात्रा की रस्म

दूसरी रस्म

  • बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेरी गड़ाई होती है. मान्यताओं के अनुसार इस रस्म के बाद से ही बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का कार्य शुरू किया जाता है.
  • सैकड़ों सालों से चली आ रही इस परंपरा के मुताबिक बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया जाता है.
  • विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना कर इस रस्म कि अदायगी के साथ ही रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली जाती है.

तीसरी रस्म

  • 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरे का तीसरा प्रमुख पंरपरा है रथ परिक्रमा. रथ परिक्रमा के लिए रथ का निर्माण किया जाता है, इसी रथ पर मां दंतेश्वरी देवी को बिठकार शहर की परिक्रमा कराई जाती है.
  • लगभग 30 फीट ऊंचे इस विशालकाय रथ को परिक्रमा कराने के लिए 400 से अधिक आदिवासी ग्रामीणों की जरूरत पड़ती है.
  • रथ निर्माण में प्रयुक्त सरई की लकड़ियों को एक विशेष वर्ग के लोगों द्वारा लाया जाता है. बेडाउमर और झाडउमर गांव के ग्रामीण आदिवासियों द्वारा 14 दिनों में इन लकड़ियों से रथ का निर्माण किया जाता है.

काछन गादी की रस्म

  • बस्तर दशहरा का आरंभ देवी की अनुमति के बाद होता है. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनूठी है, काछन गादी नामक इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या कांटों के झूले पर लेटकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है.
  • इस परंपरा की मान्यता अनुसार कांटों के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती हैं. अनुसूचित जाति के एक विशेष परिवार की कुंआरी कन्या विशाखा बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है, 15 वर्षीय विशाखा पिछले 7 सालों से काछनदेवी के रूप में कांटों के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाती आ रही है.
  • नवरात्र के पहले दिन बस्तर के अराध्य देवी माई दंतेश्वरी के दर्शन के लिए हजारों की संख्या मंदिर पहुंचते हैं और मनोकामना दीप जलाते हैं.

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जोगी बिठाई की रस्म
बस्तर दशहरा की एक और अनूठी और महत्वपूर्ण रस्म जोगी बिठाई है, जिसे शहर के सिरहासार भवन में पूर्ण विधी विधान के साथ संपन्न किया जाता है. इस रस्म में एक विशेष जाति का युवक प्रति वर्ष 9 दिनों तक निर्जल उपवास रख सिरहासारभवन स्थित एक निश्चित स्थान पर तपस्या के लिए बैठता है.

रथ परिक्रमा
इसके बाद होती है बस्तर दशहरे की अनूठी रस्म रथ परिक्रमा. इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा पारंपरिक तरीके से लकड़ियों से बनाए लगभग 40 फीट ऊंचे रख पर माई दंतेश्वरी के छत्र को बिठाकर शहर में घुमाया जाता है. 40 फीट ऊंचे और 30 टन वजनी इस रथ को सैंकड़ों ग्रामीण मिलकर खींचते हैं.

निशा जात्रा की रस्म

  • बस्तर दशहरे की सबसे अद्भुत रस्म निशा जात्रा होती है. इस रस्म को काले जादू की रस्म भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस रस्म को राजा महाराजा बुरी प्रेत आत्माओं से अपने राज्य की रक्षा के लिए निभाते थे. निशा जात्रा कि यह रस्म बहुत मायने रखती है.
  • दशहरा में विजयदशमी के दिन जहां तरफ पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है, वहीं बस्तर में विजयदशमी के दिन दशहरे की प्रमुख रस्म भीतर रैनी मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी और यही वजह है कि शांति, अंहिसा और सद्भाव के प्रतीक बस्तर दशहरा पर्व में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है.
  • बस्तर दशहरा का समापन दंतेवाड़ा से पधारी माई जी विदाई की परंपरा के साथ होता है. पूरी गरिमा के साथ जिया डेरा से दंतेवाड़ा के लिए विदाई देकर की जाती है. माई दंतेश्वरी की विदाई के साथ ही ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का समापन होता है.
  • विदाई से पहले माई जी की डोली और छत्र को दंतेश्वरी मंदिर के सामने बनाए गए मंच पर आसीन कर महाआरती की जाती है. यहां सशस्त्र सलामी बल देवी दंतेश्वरी को सलामी देता है और भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. विदाई के साथ ही 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा पर्व का समापन होता है.
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

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