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बस्तर की संस्कृति समेटे निकली जगन्नाथ रथ, गोंचा पर्व की शुरुआत - crime new

बस्तर के प्रसिद्ध पर्व गोंचा की शुरुआत हो गई है. गुरुवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा बड़े ही धूम धाम से निकाली गई, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए.

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा.

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Published : Jul 4, 2019, 11:33 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: दक्षिणी छत्तीसगढ़ हमेशा से ही अपनी कला, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्यता को लेकर पूरे देश में जाना जाता है. बस्तर का दशहरा हो या फिर बस्तर की रथयात्रा. लोग दूर-दूर से खूबसूरत वादियों के बीच आदिवासी समाज की संस्कृति और सभ्यता का गवाह बनने आते हैं.

देखें बस्तर का मशहूर गोंचा पर्व

बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा के बाद गोंचा पर्व को दूसरे बड़े पर्व का दर्जा दिया गया है. बीते 600 साल से चली आ रही परंपराओं के मुताबिक ये पर्व 11 दिनों तक मनाया जाता है. पुरी की तर्ज पर यहां भगवान जगन्नाथ के साथ ही माता सुभद्रा और बलभद्र के तीन रथ निकाले जाते हैं.

तुपकी का बड़ा महत्व
तुपकी की सलामी के बाद ही रथयात्रा की शुरुआत की जाती है. तुपकी बांस से बना हुआ औजारनुमा चीज होता है. बस्तर के आदिवासी समाज द्वारा इसे लंबे समय से बनाया जा रहा है. तीन विशालकाय रथों में सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र के रथ के दर्शन करने के लिए भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ती है.

ऐसे हुई शुरुआत
करीब 600 साल पहले बस्तर के राजा महाराज पुरषोत्तम पैदल यात्रा करते हुए ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने पहुंचे थे. पुरी के राजा गजपति ने उन्हें जगन्नाथ मंदिर में मौजूद माता सुभद्रा का रथ दिया था. इसके बाद से ही बस्तर में जगन्नाथ रथयात्रा को बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा.

मंदिर में 7 दिन आराम करेंगे भगवान
परंपराओं के मुताबिक गोंचा पर्व के पहले दिन ही भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा को अपने साथ गुंडेचा मंदिर लेकर जाते हैं. यहां दोनों 7 दिनों तक आराम करते हैं. इस दौरान बस्तर राजपरिवार भी भगवान जगन्नाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा पाठ करता है. दिन बीतते गए और परंपराओं में बदलाव देखने को मिले, लेकिन बस्तर की लोग आज भी उत्साह के साथ इस पर्व में हिस्सा लेते हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

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