जगदलपुर:बस्तर में नक्सलवाद पिछले 5 दशकों से पैठ जमाए हुए है. नक्सल विचारधारा ने धीरे-धीरे बस्तर के भोले-भाले आदिवासियों को शिकार बनाया है. नतीजा यह हुआ कि बेहद ही कम उम्र में आदिवासी नक्सल विचारधारा से प्रभावित होकर दलम में जुड़ गए और नक्सलियों के साथ अहिंसा के मार्ग पर चलने लगे. बस्तर में ऐसे कई आदिवासी हैं, जिन्होंने बचपन में अपना होश भी नहीं संभाला था और उन्हें नक्सलवाद का दामन थामना पड़ा. वे या तो जबरन शामिल कराए गए या हालातों ने उन्हें मजबूर कर दिया. जिसके बाद से ही उनके सारे तीज त्योहार खत्म हो गए. परिवार से बिछड़ने के साथ-साथ जंगलों में ही इन्होंने अपना बसेरा बना लिया.
इन्हें रक्षाबंधन त्योहार की भी कोई जानकारी नहीं है. इस बात का खुलासा तब हुआ जब कटेकल्याण एरिया कमेटी की सदस्य दशमी ने बस्तर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया. दशमी ने सरकार की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर पुलिस के सामने अपने हथियार डाल दिए और मुख्यधारा से जुड़कर अपनी आगे की जिंदगी खुशी से बिताने की इच्छा जताई.
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दशमी ने बताया कि उसके परिवार में एक भाई है, जिसका नाम लक्ष्मण है और वह भी बचपन से ही नक्सलियों के दलम में शामिल करा लिया गया. वर्तमान में दरभा एरिया कमेटी का एलओएस कमांडर है. मुख्यधारा से जुड़ने के बाद दशमी ने मीडिया के माध्यम से अपने भाई लक्ष्मण से अपील की है कि वह भी नक्सलवाद को त्याग कर समाज की मुख्यधारा से जुड़े. ताकि वह भी अपनी आगे की जिंदगी हंसी खुशी साथ में बिताये. दशमी ने यह भी कहा कि आने वाले सप्ताह में भाई बहन के स्नेह और प्यार का त्योहार रक्षाबंधन भी है. ऐसे में वे अपने भाई से चाहती है कि वह पुलिस के सामने सरेंडर कर दें, ताकि इस प्यार भरे त्योहार को वे साथ में मना सके.