जगदलपुर: बस्तर में तैनात जवान न सिर्फ नक्सली मोर्च पर जंग लड़ रहे हैं, बल्कि उनके सामने विकास कार्यों के साथ-साथ ग्रामीणों के दिलों में जगह बनाना भी बड़ी चुनौती है. कौन नहीं जानता कि सुदूर ग्रामीण अंचलों में मौत के मुंह में खड़े जवानों के लहू से कितनी सड़कें रंगी गई हैं, लेकिन हमारे वीरों के हौसले ऐसे नहीं कि टूट जाएं. 20 साल के अंधेरे को छांटकर यहां उम्मीदों का नया रास्ता बना है. ETV भारत की ये रिपोर्ट आपको उसी रास्ते पर लेकर चल रही है.
पिछले चार दशक से बस्तर में पसरे नक्सलवाद ने यहां के जनजीवन ही नहीं बल्कि पीढ़ियों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. न सुविधाएं पहुंची और न बच्चे-युवा नया सवेरा देख पा रहे थे. गोली, बम, बारूद की गंध में बस्तर ने अपने सांस्कृतिक विकास को खोया है. तेजी से बदलती दुनिया में बस्तर के पैर नक्सलवाद की बेड़ियों में बंधे रहे. सरकारों ने चाहा भी कि ऐसे क्षेत्रों में सड़कें बनाई जाएं, जिससे नई रोशनी को रास्ता मिले और इसी कोशिश में भारत मां के कई सपूतों को जान गंवानी पड़ी.
पांच जिले को जोड़ेगी ये सड़क
आज बस्तर में मुख्य सड़कें सहित छोटे-छोटे गांव तक पहुंचने वाली सड़कों का लगभग 700 किलोमीटर का जो जाल दिखाई पड़ता है, उसके पीछे सुरक्षा बलों की एक अहम भूमिका है. इन सड़कों में सबसे महत्वपूर्व हैं वो सड़क जिसे नक्सलियों ने 20 साल पहले पूरी तरह से आवागमन ठप कर बर्बाद कर दिया था.
ये सड़क मुख्यतः नारायणपुर के सघन जंगलों से होते हुए दंतेवाड़ा जिले के बारसूर को जोड़ती थी. इससे दंतेवाड़ा, बस्तर,बीजापुर, नारायणपुर आने जाने में आसानी होती थी. इसके साथ ही नारायणपुर से भानुप्रतापपुर होते हुए सीधे राजनांदगांव को बस्तर से जोड़ती थी, लेकिन नक्सलियों की करतूतों की वजह से यहां से आना-जाना बंद हो गया था. ये रास्ता ठप हो गया था.
पढ़ें- 'लोन वर्राटू' अभियान से लाल आतंक को झटका, 20 दिनों में 28 नक्सलियों ने डाले हथियार
20 साल बाद फिर जगी उम्मीद की किरण
20 साल के बाद अब यह सड़क फिर से निर्माण की ओर अग्रसर है. पुलिस विभाग के मुताबिक इस साल के अंत तक रोड बना ली जाएगी. इस सड़क का निर्माण पुलिस महकमे के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जाती है. और इसमें कोई दो राय नहीं कि पुलिस महकमे ने इस चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि वह कर दिखाया जो कर पाना कल तक असंभव माना जाता था.