जगदलपुर: बस्तर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने के साथ-साथ अपने वन संपदाओं के लिए भी पूरे देश में जाना जाता है. बस्तर के 70 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण इन वन संपदा पर ही आश्रित रहते हैं और उनके आय का मुख्य जरिया भी वनसंपदा है. जिले के बकावंड और बस्तर ब्लॉक काजू प्लांटेशन क्षेत्र के लिए ही जाना जाता है. बस्तर के वन संपदाओं में काजू सबसे महत्वपूर्ण फलदार वृक्षों में से एक है. बस्तर के काजू ठोस और ज्यादा स्वादिष्ट होने की वजह से इसकी डिमांड पूरे देश में बढ़ रही है.
काजू की खेती से गुलजार हो रहा बस्तर बस्तर की आबोहवा काजू की खेती के लिए अनुकूल होने की वजह से बड़ी संख्या में शासकीय विभागों से काजू का प्लांटेशन किया जाता है. इन प्लांटेशन से होने वाले काजू उत्पादन से बस्तर के ग्रामीणों की अच्छी आय होती है और यही वजह रहती है कि बस्तर के ग्रामीण अंचलों में सागौन और सालवन के बाद काजू प्लांटेशन ज्यादा संख्या में की जाती है.
3 एकड़ में हो चुका है प्लांटेशन
बस्तर में वन विभाग, उद्यानिकी विभाग के साथ अब मनरेगा योजना के तहत भी जिले के बंजर भूमि में काजू का प्लांटेशन किया जा रहा है. जगदलपुर शहर से लगे दशापाल ग्राम पंचायत में 15 साल पहले मनरेगा के तहत 3 एकड़ की भूमि में काजू का प्लांटेशन किया गया था. 5 साल में ये काजू के पौधे पेड़ बनकर तैयार हो गए और इसमें फल भी होने लगे.
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20 हजार से ज्यादा की होती है आय
गांव के सरपंच रघुनाथ कश्यप ने बताया कि उनके पंचायत में दो जगह मनरेगा के तहत काजू का प्लांटेशन किया गया है और दोनों ही जगहों से सालाना 20 हजार से ज्यादा रुपए की आय हो रही है. उन्होंने बताया कि इस पैसे को गांव के मंदिरों में पूजा-पाठ और गांव के विकास के लिए उपयोग किया जा रहा है. सरपंच कश्यप बताते है कि बस्तर में काजू प्लांटेशन के लिए मिट्टी और आबोहवा सही होने से अधिकतर ग्राम पंचायतों में काजू के प्लांटेशन किए जाते हैं. तोड़े गए काजू के फलों को 80 से 90 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है. सरपंच का कहना है कि शासन प्रशासन अगर किसानों को प्रोत्साहित करें तो ज्यादा से ज्यादा बस्तर के किसान अपने निजी भूमि में काजू का प्लांटेशन करेंगे और उन्हें इससे अच्छी आय भी होगी और ग्रामीणों को फायदा भी मिलेगा. सरपंच ने यह भी बताया कि काजू के पौधे के लिए काफी कम मात्रा में पानी का उपयोग होता है और पौधे भी 5 सालों में तैयार हो जाते है, हालांकि हर साल गर्मी के महीनों में ही काजू के फल होते हैं और ग्रामीण इसे तोड़ते है. साल में एक बार काजू फलने के बावजूद ग्रामीणों को इससे अच्छी खासी आय हो जाती है.
महिला स्व सहायता समूह की महिला करती है प्रोसेसिंग इधर बस्तर जिला प्रशासन की तरफ से भी क्षेत्र में काजू के अच्छे पैदावार के लिए ज्यादा से ज्यादा प्लांटेशन किया जा रहा है और इसके लिए वन विभाग के साथ-साथ उद्यानिकी विभाग और मनरेगा के तहत भी प्लांटेशन किया जा रहा है. बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने बताया कि वन विभाग के बकावंड ब्लॉक में प्रोसेसिंग यूनिट खोला गया है, जहां स्थानीय महिला स्व सहायता समूह के जरिए काजू का प्रोसेसिंग किया जा रहा है और उसके बाद इसे बस्तर काजू के नाम से पैकेजिंग कर मार्केट में बेचा जा रहा है. बस्तर कलेक्टर का कहना है कि इस साल 5500 क्विंटल काजू का उत्पादन किया गया है. बस्तर में काजू उत्पादन में 6 हजार परिवार जुड़े हैं. काजू से हर परिवार को औसतन 10 हजार रुपए की कमाई हुई है. साथ ही बस्तर वन मंडल में 614 महिला स्व सहायता समूह काजू संग्रहण में कार्यरत हैं और एक काजू प्रोसेंसिंग प्लांट की स्थापना भी की गई है.
बड़े स्तर पर प्रोसेसिंग प्लांट की मांग
राज्य सरकार यदि प्रयास करे तो ज्यादा से ज्यादा काजू प्रसंस्करण केंद्र और बड़े स्तर पर प्रोसेसिंग प्लांट खोलने से बस्तर में ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार मिलने के साथ काजू की पैदावार भी बढ़ेगी और बस्तर की पहचान भी बढ़ेगी. हालांकि जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते सरकार और ग्रामीणों के बीच बिचौली बड़ी संख्या में सक्रिय होते हैं. इस वजह से ग्रामीणों को थोड़ी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और काजू को इन बिचौलियों को कम दामों में बेचना पड़ता है. फिलहाल राज्य सरकार को भी चाहिए कि बस्तर में काजू उत्पादन के लिए यहां की आबोहवा अनुकूल होने की वजह से बस्तर के काजू उत्पादन के लिए ज्यादा से ज्यादा फोकस करें और जल्द ही बड़े स्तर पर प्रोसेसिंग प्लांट भी स्थापित हो सके जिससे बस्तर के काजू से ग्रामीणों को अच्छी आय होने के साथ देश-विदेश में भी काजू की पहचान हो.