जगदलपुर: यूं तो आपने बहुत सारी रस्म और रथयात्रा देखी होगी पर तस्वीरों में दिख रही ये रस्म बेहद ही खास है. इसे देखकर आपको पुरी के जगन्नाथ रथयात्रा की याद आ रही होगी पर ये रथयात्रा नहीं है. ये रस्म छत्तीसगढ़ की शान है.
हम बात कर रहे हैं 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर हुई अद्भुत रस्मों में से एक भीतर रैनी रस्म की, जिसे मंगलवार की देर रात अदा की गई.
क्यों खास है ये रस्म
- विजयादशमी की रात निभाई जाने वाली इस रस्म में 8 चक्कों के विशालकाय रथ की परिक्रमा होती है.
- पौराणिक कथाओं के अनुसार माड़िया जाति के आदिवासी आधी रात को रथ चुराकर दंतेश्वरी मंदिर से 4 किलोमीटर दूर स्थित कुमड़ाकोट जंगल ले जाते हैं, जहां राजा नाराज ग्रामीणों को मनाकर उनके साथ नवाखाई खीर खाकर वापस उस रथ को लेकर मंदिर पहुंचते हैं, जिसे बाहर रैनी रस्म कहा जाता है.
- देर रात हुई भीतर रैनी की रस्म में मां दंतेश्वरी और मामा वाली माता की डोली रथ में सवार किया गया. इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में लोग मंदिर परिसर पहुंचे.
- इस रस्म को देखने बस्तर के अलावा प्रदेश और देश के कोने-कोने से पर्यटक बस्तर पहुंचे.
- रस्म की खास बात यह है कि रथ चुराकर ले जाने वाले मढ़िया जाति के लोग ही रथ को खींचते हैं.
- 8 चक्कों के इस विशालकाय रथ को खींचने के लिए लगभग 300 से 400 आदिवासी मौजूद रहते है.