जगदलपुर:चित्रकोट विधानसभा उपचुनाव के लिए हुए मतदान में विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. सुबह से ही ग्रामीण मतदाताओं में मतदान के प्रति काफी जागरूकता देखने को मिली और यही वजह रही कि बड़ी संख्या में ग्रामीण मतदाता पोलिंग बूथ पहुंचे. खास बात ये रही कि पिछले 2018 विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 80% से अधिक मतदान हुआ. कोई नाव से तो कोई पैदल चलकर वोट डालने पहुंचा.
SPECIAL: गांव में हॉस्पिटल तक नहीं, पैदल चलकर वोट डालने पहुंचे ग्रामीण दवा खरीद कर ले गए
कुडुमखोदरा धुर नक्सल प्रभावित गांव के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन इस इलाके के लोग आज भी विकास से अछूते हैं और नक्सलगढ़ में अपना जीवन यापन कर रहे हैं.
लोकतंत्र के इस महापर्व में कुछ ऐसे लोग भी शामिल होने पहुंचे जो विकास से अछूते हैं और नक्सलगढ़ में अपना जीवन यापन कर रहे हैं. चित्रकोट विधानसभा के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहां के मतदान केंद्र को बीसपुर में स्थानांतरित किया गया था. ..कुडुमखोदरा के मतदाता 10 से 12 किलोमीटर पैदल चल कर अपने मताधिकार का प्रयोग करने मतदान केंद्र पहुंचे. वोटर्स ने बताया कि गांव में हॉस्पिटल नहीं हैं और उन लोगों ने सुविधाओं का मुंह तक नहीं देखा लेकिन लोकतंत्र के पर्व का हिस्सा बनने वे जरूर पहुंचे. कुछ मतदाता वोट डालने आए, तो साथ में दवाई लेते गए.
नक्सल प्रभावित गांव से वोट डालने आए लोग
कुडुमखोदरा धुर नक्सल प्रभावित गांव है, जिसके चलते मतदान केंद्र को बीसपुर में स्थापित किया गया था. बीसपुर की दूरी कुडुमखोदरा गांव से 12 किलोमीटर की है और आने जाने के लिए कोई माध्यम भी नहीं है. इसके बावजूद 550 की आबादी वाले गांव के ग्रामीणों का मतप्रतिशत 55% रहा.
- यहां के ग्रामीण हर चुनाव में इसी उमीद से मतदान करने पहुंचते हैं कि उनकी मूलभूत सुविधाओं के लिए कभी कोई जनप्रतिनिधि कुछ करेगा. पिछले कई चुनाव में ये ग्रामीण 12 किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने पहुंच रहे हैं. इस गांव की समस्या जस के तस बनी हुई है.
- ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में न ही स्वास्थ्य केंद्र है और न ही पेयजल की सुविधा है और न ही सड़क और बिजली है. बावजूद उसके ये मतदान करने पहुंचे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि उनके गांव का विकास होगा.
- मतदान करने पहुंचे ग्रामीणों में कुछ ऐसे भी ग्रामीण थे जो हाथ में दवाई लिए हुए थे. उनका कहना है कि उनके गांव में अस्पताल नहीं, स्वास्थ्य की भी कोई सुविधा नहीं है.
- ये मतदान करने आए तो इसी दौरान भी दवाई भी ले लिए. हालांकि अब इस गांव में उतनी नक्सल समस्या नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी लेकिन दहशत आज भी बरकरार है.