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'बस्तर की चापड़ा चटनी ने ग्रामीणों को कोरोना से बचाया'

जगदलपुर में आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बस्तर की चापड़ा चटनी को कोरोना वायरस से निपटने के लिए रामबाण बताया है. उन्होंने कहा कि बस्तर के लोग चापड़ा चटनी खाते हैं, इसलिए उन पर कोरोना महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा.

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चापड़ा चटनी ने बस्तर के ग्रामीणों को कोरोना से बचाया

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Published : Jan 9, 2021, 1:08 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: तीन दिवसीय जिले के प्रवास के अंतिम दिन आबकारी मंत्री कवासी लखमा एम्स मेडिकल द्वारा आयोजित नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. इस दौरान कवासी लखमा ने कहा कि कोरोना महामारी में बस्तर संभाग सेफ जोन रहा और यहां ग्रामीण अंचलों में रहने वाले बेहद ही कम ग्रामीण इस महामारी की चपेट में आए.

कोरोना पर कवासी लखमा का बयान

ओडिशा के हाईकोर्ट ने चापड़ा चटनी को बताया रामबाण

हमेशा से ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि बस्तर के लोग चापड़ा चटनी खाते हैं, इसलिए उन पर कोरोना महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा. मंत्री ने बताया कि उन्होंने एक अखबार में पढ़ा था कि ओडिशा हाईकोर्ट ने कोरोना महामारी से बचने के लिए चापड़ा चटनी को रामबाण बताया है. साथ ही आयुष मंत्रालय को इसे लेकर शोध करने के भी निर्देश दिए हैं. लखमा ने ये भी कहा कि यह किसी जनप्रतिनिधी या नेता का कहना नहीं है, बल्कि ओडिशा हाईकोर्ट ने ऐसा कहा है.

लाल चींटी

पढ़ें:SPECIAL: जानिए क्यों खास है बस्तर की 'चापड़ा चटनी'

बस्तर के ग्रामीणों को चापड़ा चटनी ने कोरोना से बचाया

मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि बस्तर के ग्रामीण चापड़ा चटनी बड़े चाव से खाते हैं. यही वजह है कि वे कोरोना महामारी से बच गए और नारायणपुर, सुकमा जैसे जिलों में कोरोना से मौत के एक भी मामले सामने नहीं आए. उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां इस महामारी की चपेट में आने से अमेरिका और अन्य देशों में लोग बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आए, वहीं बस्तर के लोग इस चटनी के सेवन से कोरोना महामारी से बचे रहे.

उड़ीसा हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक जनवरी को आयुष मंत्रालय, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के निदेशक जनरलों को कहा कि वे 3 महीने के अंदर इस प्रस्ताव पर फैसला लें कि क्या लाल चींटी की चटनी कोविड-19 के इलाज में कारगर है.

उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर ये निर्देश जारी किया. याचिका में कोविड-19 के उपचार में लाल चींटी की चटनी की प्रभावकारिता पर रिसर्च का प्रस्ताव में हस्तक्षेप की मांग थी. यह याचिका इंजीनियर नयाधर पढियाल ने दायर की थी. पडियाल ने अपना प्रस्ताव सीएसआईआर को 23 जून को और केंद्रीय आयुष मंत्रालय को 7 जुलाई को भेजा था. दलील में कहा गया है कि इस चटनी में कई "एंटी-बैक्टीरियल गुण" हैं जो पाचन तंत्र में किसी भी संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकते हैं. दलील में ये भी कहा गया है कि चटनी प्रोटीन, कैल्शियम और जिंक से भी भरपूर होती है, जो इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करती है.

इन बीमारियों में खाते हैं आदिवासी

लाल चींटी की चटनी, जो लाल चींटियों और हरी मिर्च का मिश्रण है, पारंपरिक रूप से ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में आदिवासी बेल्ट में एक दवा के रूप में उपयोग की जाती है. यह आमतौर पर फ्लू, खांसी, सामान्य सर्दी, सांस लेने में कठिनाई, थकान और अन्य बीमारियों में दवा का काम करती है. बस्तर के जंगलों में बहुतायत में सरई, आम-जामुन अन्य पेड़ पाए जाते हैं. इनकी टहनियों पर एक विशेष प्रकार की चीटी पाई जाती है. जिसकी चटनी बनाकर यहां के ग्रामीण बड़े चाव से खाते हैं. इसे 'चापड़ा चटनी' कहा जाता है. इसे यहां के रहवासी के अलावा पर्यटक भी इसका स्वाद चखते हैं.

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ऐसी बनती है चापड़ा चटनी

विशेष प्रकार की पाई जाने वाली चींटी का रंग हल्का लाल या भूरा होता है. जिसे स्थानीय भाषा में हलिया, चापड़ा, चपोड़ा या चेपोड़ा कहा जाता है. ये चींटी मीठे तनी वाले सभी परीक्षाओं में पाई जाती है. वृक्ष की पत्तियों को अपने विशेष प्रकार के लार से जोड़कर घोसला या गुड़ा बनाती है. जिसे गुड़ा या जयपुरा चिपटा कहा जाता है. ग्रामीणों का इसका इतना अनुभव है कि इस गुड़ा या घोसला के रंग के आधार पर सटीक अनुमान लगाकर परख लेते हैं कि, चापड़ा खाने लायक हो चुका है. इसी चोपड़ा या लाल चीटी से विश्व प्रसिद्ध लजीज चापड़ा चटनी बनाई जाती है.

कैसे बनाई जाती है चटनी?

चटनी बनाने के लिए चीटियों को गुड़ा से झड़ाकर पात्र या चादर में तेज धूप में छोड़ दिया जाता है. जिससे यह चींटियां तेज धूप में मर जाती हैं. चीटियों और अंडों को ग्रामीण अलग-अलग करते हैं. चींटियों की चटनी बनाई जाती है और इनके अंडों की सब्जी बनाई जाती है. अंडे और चींटियों को एक साथ पीसकर भी चटनी बनाई जाती है. वहीं अदरक, लहसुन, लाल मिर्च, हरी मिर्च, धनिया को पत्थर के सिल-बट्टे पर इन चींटियों के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है, जिसे मंड़िया पेज या भोजन के साथ या फिर ऐसे ही ग्रामीण आदिवासी बड़े चाव से खाते हैं.

पढ़ें:बस्तर में मिलती है चींटी की चटनी, स्वाद के साथ सेहत का भी रखती है ख्याल

बस्तर क्षेत्र में वर्ष भर चापड़ा चटनी का भोजन में भी आदिवासी प्रयोग करते हैं. वहीं अब चापड़ा चटनी का शहरी लोग भी इसका उपयोग कर रहे हैं. जिसके कारण शहरों के सब्जी बाजारों में यह अब उपलब्ध होने लगा है. यहां के स्थानीय भीषण गर्मी और लू से बचने के लिए गोर्रा जावा या मड़िया पेज के साथ चापड़ा चटनी का उपयोग करते हैं.

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

वहीं जानकार बताते हैं कि 'चापड़ा चीटी उसके अंडों के कई मेडिसिनल वैल्यू है. गांव में आज भी बुखार के प्राथमिक उपचार के रूप में चापड़ा चीटी से कटवाया जाता है, जिससे बुखार उतर जाता है. चापड़ा चीटियों में फार्मिक एसिड नामक रसायन होता है. यहां के लोगों का मानना है कि चापड़ा चींटियां स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. इसके सेवन से मलेरिया, पित्त और पीलिया जैसी बीमारियों से आराम मिलने का दावा करते हैं.' जानकारों का ये भी कहना है कि, 'इसमें फार्मिक एसिड के कारण ही चटनी में खटास बढ़ जाती है. साथ ही प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन अन्य के भी यह चीटियां रिच सोर्सेस हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर रोगों से बचाव करने में मददगार होती हैं.'

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

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