जगदलपुर:अनोखी और आकर्षक परंपराओ के लिए विश्व में प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आरंभ शुक्रवार की रात देवी की अनुमति के बाद हो गया है. दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति लेने की यह परंपरा भी अपने आप में अनुठी है. इस रस्म को काछन गादी के नाम से जाना जाता है. इस रस्म में एक नाबालिग कुंवारी कन्या कांटो के झूले पर लेटकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. 12 साल की कन्या अनुराधा ने काछन देवी के रूप में कांटो के झूले पर लेटकर सदियों पुरानी इस परंपरा को निभाने के लिए अनुमति दी.
बस्तर में शाम से हो रही तेज बारिश के बीच इस रस्म की अदायगी धूमधाम से की गई. अनुराधा नाम की कन्या ने कांटो के झूले पर लेटकर दशहरा पर्व शुरू करने की अनुमति दी है. कोरोना की वजह से इस रस्म में केवल बस्तर राजपरिवार के सभी सदस्य, बस्तर सांसद दीपक बैज, समिति के सदस्य, जिला प्रशासन के अधिकारी-कर्मचारी और मांझी चालकी मौजूद रहे.
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610 सालों का इतिहास
करीब 610 सालों से चली आ रही इस परंपरा की मान्यता के अनुसार बेल के कांटो के झूले पर लेटी कन्या के अंदर साक्षात देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. बस्तर का महापर्व दशहरा बिना किसी बाधा के संपन्न हो इस मन्नत और आशीर्वाद के लिए काछन देवी और रैला देवी की पूजा होती है. शुक्रवार रात काछन देवी के रूप में मिर्घान जाति की कुंआरी कन्या अनुराधा ने बस्तर राजपरिवार को दशहरा पर्व आरंभ करने की अनुमति दी है.
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अनुमति है आवश्यक
यह भी मान्यता है कि इस महापर्व को निर्बाध संपन्न कराने के लिये काछन देवी की अनुमति आवश्यक है. इसके लिए मिर्घान जाति की कुंवारी कन्या को बेल के कांटो से बने झूले पर लेटाया जाता है. इस दौरान उसके अंदर खुद देवी आकर पर्व आरंभ करने की अनुमति देती है. हर वर्ष पितृमोक्ष की अमावस्या को इस प्रमुख विधान को निभा कर बस्तर राजपरिवार यह अनुमति प्राप्त करता है. इस दौरान बस्तर राजपरिवार के सदस्य स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ हजारों की संख्या में इस अनुठी परंपरा को देखने काछन गुडी पहुंचते हैं.