बस्तर: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरे में कई अनोखी रस्में निभाई जा रही है. इन सभी रस्मों के साथ कोई न कोई कहानी भी जुड़ी हुई है. ऐसा ही एक रस्म है ज्योति कलश स्थापना (Jyoti Kalash is lit in bastar dashahra). कथा के अनुसार छिंदन नागवंशी नरेश हरीश चंद्र देव की पुत्री चमेली बाबी के नाम से दशहरे के मौके पर ज्योति कलश स्थापित (memory of Princess chameli Babi) किया जाता है. साथ ही ज्योति कलश में रथारूढ़ दंतेश्वरी के क्षत्र का फूल अर्पित किया जाता है. इस परंपरा को एरंडवाल गांव के पैगड परिवार के लोग वर्षों से निभाते आ रहे हैं. bastar dashahra 2022
चमेली बाबी की स्मृति में जलाई जाती है ज्योति कलश: बस्तर के अंतिम छिन्दक नागवंशी राजा हरीशचंद्र देव की राजधानी चित्रकोट में थी. उनकी पुत्री चमेली रूपवान और साहसी दोनों थी. इसी कारण चमेली चित्रकोट रियासत की सेनापति भी बनी. वर्ष 1323 में वारंगल से बारसूर पहुंचे अन्नमदेव को चित्रकोट सेनापति की सुंदरता और युद्ध कला की जानकारी मिली. जिसके बाद उन्होंने हरीशचंद्र देव को प्रस्ताव भिजवाया कि उनकी पुत्री उनसे विवाह करे या युद्ध के लिए तैयार रहें. दो तरफा प्रस्ताव से राजा और राजकुमारी दोनों ही नाराज हो गए. राजकुमारी चमेली बाबी ने अन्नमदेव को संदेश भिजवाया कि वह युद्ध करें और विवाह का प्रस्ताव भूल जाए. इस बात से क्रोधित होकर अन्नमदेव अपनी सेना लेकर चित्रकोट पहुंचे. लोहंडीगुड़ा के पास बेलियापाल के मैदान में भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में चित्रकोट नरेश वीरगति को प्राप्त हुए. जबकि चमेली को अन्नमदेव की सेना ने घेर लिया.