जगदलपुर: भारत में संसद को ही लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है, लेकिन इसी भारत में छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर एक संविधान का मंदिर भी मौजूद है. जहां हर रोज संविधान की पूजा की जाती है. मंदिर की स्थापना 1992 में की गई थी.
एक अनोखा मंदिर जहां हर दिन होती है संविधान की पूजा दरअसल, डाइकिन स्टील प्लांट की स्थापना के विरोध में उपजे आंदोलन की सफलता ने आदिवासियों को संविधान में मिले उनके अधिकारों से अवगत कराया था. उसी दौरान पंचायती राज में 73वें संशोधन से ग्राम सभाओं को मिली ताकत का सबसे पहले बस्तर में प्रयोग किया गया था और आखिरकार ये स्टील प्लांट नहीं बनाया जा सका. क्योंकि, बुरुंगपाल ग्राम पंचायत ने ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित कर स्टील प्लांट को खारिज कर दिया था. इस जीत से उत्साहित ग्रामीणों ने स्टील प्लांट के शिलान्यास स्थल पर ही संविधान का मंदिर बना दिया. जहां आज भी पंचायत में किसी भी बैठक, सभा या कोई फैसला लेने से पहले इस मंदिर में संविधान की पूजा की जाती है. 2000 की आबादी वाले इस गांव की खास बात यह है कि यह देश में अकेला गांव है, जहां संविधान का मंदिर है.
स्टील प्लांट के लिए हुआ था भूमि पूजन
6 अक्टूबर 1992 को एसएम डाइकिन के स्टील प्लांट का भूमि पूजन और शिलान्यास हुआ था. जिस लेकर ग्रामीणों का कहना था कि उनसे कंपनी के बारे में कोई सलाह नहीं ली गई, जबकि संविधान की पांचवीं अनुसूची में यह जरूरी है. इसके बाद प्लांट के विरोध में इलाके से सभी आदिवासी लामबंद हो गए और कई दिनों तक आंदोलन चला. आंदोलन की अगुवाई बस्तर के कलेक्टर रह चुके समाजशास्त्री ब्रह्मा देव शर्मा ने की थी.
24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ मंदिर
हालांकि, मंदिर के लिए कोई कमरा नहीं बना है और न ही इस पर छत है, 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ ये मंदिर एक बड़े चबूतरे पर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार खड़ी कर बनाया गया है. इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्राम सभा की शक्तियां और इससे संबंधित जानकारी लिखी गई है. इस मंदिर को लेकर लोगों में गजब की आस्था है. गांव में त्योहार या कोई नया काम शुरू होने से पहले पूरा गांव यहीं जुटता है. यहां कोई फैसला देने से पहले संविधान की कसमें खाई जाती है. इसके बाद एक राय से काम शुरू किया जाता है. ये परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है. पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद 1998 में अविभाजित मध्य प्रदेश की पहली ग्रामसभा की बैठक भी बुरुंगपाल में ही हुई थी.
मंदिर से जुड़ी है आदिवासियों की आस्था
स्टील प्लांट के विरोध में मिली एक सफलता से आदिवासियों की संविधान में इतनी आस्था हुई कि उन्होंने इस संविधान को अपने सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों में शामिल कर लिया. इसी का परिणाम है कि आज देश में संविधान का पहला मंदिर वहां स्थापित है, जहां नक्सलवाद ने अपनी जड़े जमा रखी हैं. ये मंदिर महज एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है, लेकिन ये बस्तर के उन लोगों की बड़ी सोच को परिभाषित करता है, जिसे लोग पिछड़ा और अशिक्षित मानते हैं.