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SPECIAL: बस्तर के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल, मामूली इलाज के लिए भी 40 किलोमीटर का सफर

बस्तर जिले के दूरदराज इलाकों के ग्रामीण आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं, बेहतर तो काफी दूर की बात है इन इलाके में रहने वाले लोगों को मामूली इलाज के लिए भी 40 से 50 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा हैं.

health services in bastar rural areas are poor
बस्तर के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

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Published : Oct 16, 2020, 8:08 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर:बस्तर जिले के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल पड़ी हैं. डॉक्टरों और स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव में ग्रामीण अंचलों के मरीजों को इलाज के लिए 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ रही है. ETV भारत ने बस्तर के कई गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों से चर्चा की, जिसमें ग्रामीणों ने छोटे-मोटे इलाज के लिए भी लंबी दूरी तय करने की बात कहीं.

बस्तर के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

हालात ये हैं कि जिले के 100 से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों के ग्रामीणों को कई छोटी- मोटी बीमारियों के इलाज के लिए भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बस्तर के अधिकतर ग्राम पंचायतों में स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने की वजह से परेशान ग्रामीणों को कोरोना की वजह से अन्य बीमारियों का इलाज भी नहीं मिल पा रहा है.

सर्दी-खांसी के इलाज के लिए भी 40 किलोमीटर का सफर

बस्तर के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

दरअसल बस्तर के ग्रामीण छोटे-मोटे बीमारियों के इलाज के लिए गांव के स्वास्थ्य केंद्रों में निर्भर रहते हैं, लेकिन जिले के अधिकतर ग्रामों में स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं बनाये गए है, कई बार ग्रामीणों के द्वारा आवेदन देने के बावजूद भी उप स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने से उन्हें या तो झोलाछाप डॉक्टरों के पास इलाज कराने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है या फिर 40 से 50 किलोमीटर की दूरी तय कर डिमरापाल मेडिकल कॉलेज या शहर के महारानी अस्पताल में इलाज के लिए जाने को मजबूर होना पड़ता है.

गांव में नहीं है स्वास्थ्य केंद्र

बस्तर के ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

जगदलपुर शहर से लगे बिलोरी और पोड़ागुड़ा गांव के ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने की वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वर्तमान में कोरोना तेजी से फैल रहा है ऐसे में उन्हें अन्य किसी बीमारी के इलाज के लिए जगदलपुर के महारानी अस्पताल और डिमरापाल अस्पताल में आश्रित रहना पड़ता है और उनके गांव से दोनों अस्पताल काफी दूर होने की वजह से उन्हें आने-जाने के लिए भी काफी दिक्कतें होती हैं. यही नहीं स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने की वजह से डिलीवरी केसेस और अन्य गंभीर बीमारी के इलाज के लिए उन्हें तुरंत उपचार नहीं मिल पाता है और पूरी तरह से उन्हें अस्पताल में ही निर्भर रहना पड़ता है.

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झोलाछाप डॉक्टर के भरोसे जिंदगी

ग्रामीणों का कहना है कि कई बार स्वास्थ्य केंद्र की मांग की गई है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है लिहाजा छोटे-मोटे बीमारी के लिए उन्हें घरेलू उपचार करना पड़ता है या फिर किसी झोलाछाप डॉक्टर के पास इलाज कराने के लिए मजबूर हो जाते हैं. यही हाल जिले के कई ग्रामीण अंचलों का है जिनमें नक्सल प्रभावित ग्राम भी शामिल है.

'कई बार की गई स्वास्थ्य केंद्र बनाने की मांग'

बिलोरी गांव की सरपंच सुमन बघेल का कहना है कि उन्होंने चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले गांव में स्वास्थ्य केंद्र बनाने की मांग आवेदन के माध्यम से की थी, लेकिन आज मांग किए साल भर बीतने को है और उनके गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं बनाया गया है, लिहाजा इससे उन्हें और उनके ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाने की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सरपंच का कहना है कि कई बार तो ग्रामीण एंबुलेंस के समय पर नहीं पहुंचने की वजह से दम भी तोड़ देते हैं.

आंकड़ों के मुताबिक बस्तर जिले में एक मेडिकल कॉलेज, एक जिला अस्पताल और भानपुरी में एक सिविल अस्पताल है, इसके अलावा 9 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. वहीं 37 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, इसके अलावा 200 से अधिक उपस्वास्थ्य केंद्र हैं, लेकिन जिले की आबादी को देखते हुए 100 से अधिक उपस्वास्थ्य केंद्रों की जिले में आवश्यकता है, जिससे कि ग्रामीणों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके.

स्वास्थ्य विभाग में स्टाफ की कमी

स्वास्थ्य विभाग में स्टाफ की कमी भी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है, 130 से अधिक रिक्त पदों में नर्स व डॉक्टरों की भर्ती होनी है. लेकिन अब तक भर्ती नहीं हो सकी है. इसके अलावा जिन पंचायतों में स्वास्थ्य केंद्र भी है, वहां भी सुविधा नहीं होने की वजह से और स्वास्थ्य कर्मचारी समय पर नहीं आने की वजह से इलाज नहीं मिल पाता है.

'न मास्क न ग्लब्स'
बिलोरी गांव के मितानिन का कहना है कि जिले में तेजी से फैल रही कोरोना महामारी के रोकथाम के लिए जिला प्रशासन द्वारा ग्रामीण अंचलों में सर्वे के लिए एक टीम बनाया गया है जिसमें मितानिन ,आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षकों को शामिल किया गया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से किसी तरह से कोई सुविधा नहीं मिल पाने की वजह से उन्हें जान जोखिम में डालकर सर्वे करना पड़ रहा है. मितानिन का कहना है कि उन्हें स्वास्थ्य विभाग की ओर से सिर्फ एक मास्क उपलब्ध कराया है न ही उन्हें सैनिटाइजर दिया गया है, और न ही हाथों में पहनने के लिए ग्लब्स मुहैया कराया गया है , ऐसे में उन्हें खुद अपनी जान जोखिम में डालकर सर्वे करना पड़ता है.

'बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने की कोशिश'

इस पूरे मामले में बस्तर कलेक्टर रजत बंसल का कहना है कि वर्तमान में जिले में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच ग्रामीण अंचलों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने की पूरी कोशिश जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है. मितानिन व स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा ग्रामीणों की जांच परीक्षण भी किया जा रहा है और उन्हें अन्य बीमारी के इलाज के लिए डिमरापाल और महारानी अस्पताल लाया जा रहा है. इसके अलावा मलेरिया और डेंगू व कुपोषण के इलाज के लिए जिला प्रशासन द्वारा अभियान चलाकर जांच व इलाज किया जा रहा है. कलेक्टर का कहना है कि ग्रामीण अंचलों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने की पूरी तरह से कोशिश की जा रही है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

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