जगदलपुर: बुधवार को बस्तर दशहरा की प्रसिध्द रस्म रथ परिक्रमा का समापन हुआ. रथ परिक्रमा की आखिरी रस्म 'बाहर रैनी' के तहत माड़िया जाति के ग्रामीणों द्वारा परंपरा के मुताबिक 8 पहिए वाले रथ को चुराकर कुम्हडाकोट ले जाया जाता है. इसके बाद राज परिवार की ओर से कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाया जाता है और उनके साथ नवाखानी (खीर) खाकर रथ को वापस राजमहल लाया जाता है. वहीं इस रस्म में शामिल होने के लिए प्रदेश के उद्योग मंत्री कवासी लखमा और बस्तर सांसद दीपक बैज भी कुम्हड़ाकोट पहुंचे.
पूरी हुई 'बाहर रैनी' की रस्म - बता दें कि बस्तर में बड़ा दशहरा विजयादशमी के एक दिन बाद मनाया जाता है. वहीं भारत के अन्य स्थानों में मनाए जाने वाले रावण दहन के विपरीत बस्तर में दशहरे का हर्षोल्लास रथोत्सव के रूप में नजर आता है.
- बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव के अनुसार प्राचीन काल में बस्तर को दंडकारण्य के नाम से जाना जाता था, जो कि रावण की बहन सुर्पनखा की नगरी थी. इसके अलावा मां दुर्गा ने बस्तर में ही भस्मासुर का वध किया था, जो कि काली माता का एक रूप है. इसलिए यहां रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि बड़ा रथ चलाया जाता है.
- इस 'बाहर रैनी' रस्म में असंख्य देवी-देवता के छत्र और डोलियां शामिल होती हैं.
क्या है बस्तर दशहरे की कहानी
- बस्तर के राजा पुर्शोत्तामदेव द्वारा जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरंभ की गई थी, जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है.
- 10 दिनों तक चलने वाले रथ परिक्रमा के विजयादशमी वाले दिन भीतर रैनी की रस्म पूरी की गई, जिसमें परंपरानुसार माड़िया जाति के ग्रामीण शहर के मध्य स्थिति सिरासार से रथ को चुराकर कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं.
- बुधवार को बाहर रैनी की रस्म अदा की गई, जिसमें बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव शाही अंदाज में घोड़े में सवार होकर कुम्हड़ाकोट पहुंचते हैं. ग्रामीणों के साथ नवाखानी (खीर) खाते हैं, जिसके बाद राज परिवार द्वारा ग्रामीणों को समझाबुझाकर रथ को वापस शहर लाया जाता है. रथ को इस तरह वापस लाना 'बाहर रैनी' कहलाता है.
- इस रस्म के बाद इस विश्व प्रसिद्द रथ परिक्रमा की रस्म का समापन होता है. विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा के इस आखिरी रस्म को देखने लोगों का जनसैलाब उमड़ पडता है. दूर दराज से पहुंचे आंगादेव और देवी-देवताओं की डोली भी इस रस्म अदायगी में कुम्हडाकोट पंहुचती है और जहां से सभी नवाखानी खाकर रथ को वापस दंतेश्वरी मंदिर पंरिसर में पहुंचाते हैं.
- बकायदा माता के छत्र को रथारूढ़ करने से पहले बंदूक से फायर कर 3 बार सलामी भी दी जाती है. इधर इस अनूठी रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी भी बस्तर पंहुचे हैं.