बस्तर:काजू की पैदावार अब तक तटीय और समंदर किनारे के क्षेत्रों में ही होती आई है. लेकिन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर में भी काजू की अच्छी खासी खेती होने लगी है. काजू उत्पादन के लिए बस्तर का वातावरण काफी अनुकूल है. जिसे देखते हुए लगभग 20 से 25 साल पहले वन विभाग और उद्यानिकी विभाग ने मिलकर बस्तर में काजू के पौधे लगाए. अच्छे और अनुकूल वातावरण से काजू के पौधे बढ़कर पेड़ बन गए. अब उन पेड़ों से अच्छी मात्रा में काजू मिलने लगा है. अच्छी मात्रा में काजू के उत्पादन से नक्सलगढ़ की महिलाओं को भी आय का नया जरिया मिला है.
बस्तर में काजू की अच्छी पैदावार को देखते हुए जगदलपुर के तुरेनार में बनाए गए औद्योगिक पार्क रीपा में काजू प्रसंस्करण यूनिट बनाया गया है. इस यूनिट में महिलाओं को रोजगार दिया गया है. यशोदा महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं इस केंद्र में काजू की पैकिंग कर बेचती है.
बस्तर की महिलाओं के लिए आय का जरिया बना काजू:समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले आसपास के इलाकों से काजू के बीज खरीदती है. इसके बाद काजू के बीज को उबाला जाता है. उसे मशीन में डालकर काटा जाता है. इसके बाद कटे हुए बीजों को लगभग 8 घंटे तक ड्रायर में सुखाया जाता है. काजू के बीच सूखने के बाद महिलाएं उन बीजों से काजू को अलग करती है उसके बाद उनके छिलके निकाले जाते हैं. ऊपर का छिलका निकालने के बाद काजू बिल्कुल साफ और सफेद रंग का हो जाता है. इन काजुओं को दोबारा ड्रायर में सूखने के लिए 1 घंटे रखा जाता है. इसके बाद काजू की पैकिंग की जाती है. महिलाएं 1 किलो काजू 800 रुपये किलो की कीमत से अलग अलग जगह बेचती है. सी मार्ट में भी बस्तर का काजू बेचा जाता है.