जगदलपुर: छत्तीसगढ़ में बस्तर नक्सलियों का गढ़ बना हुआ है. संभाग के सातों जिले नक्सल प्रभावित हैं. खासकर दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर में नक्सली अधिकांश वारदातों को अंजाम देते हैं. आईईडी बम नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नक्सलियों का सबसे मुख्य हथियार होता है . इसके जरिए नक्सली समय-समय पर बड़ी घटनाओं को भी अंजाम देते हैं. बम के चपेट में आकर कई पुलिस जवानों के साथ बेकसूर ग्रामीण और मवेशियों की मौत हो चुकी है. अंदरूनी क्षेत्रों में सड़क निर्माण से लेकर निर्माणाधीन भवनों और जंगलों के अंदर नक्सली बड़ी संख्या में आईईडी और प्रेशर बम का उपयोग कर रहे हैं.
बस्तर में भी पिछले कुछ सालों में कई लोगों की जान नक्सलियों के प्लांट किए गए IED (improvised explosive device) के चपेट में आने से गई है. जिले के दरभा, बोदली और माचकोट इलाके में अधिकतर आईईडी प्लांट किए गए थे. खतरनाक IED बम को खोज निकालने में और डिफ्यूज करने में बस्तर की BDS (बम निरोधक दस्ता) की टीम अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. ETV भारत ने बस्तर में तैनात बम निरोधक दस्ता के सदस्यों से बात की है. उन्होंने बम खोजने और डिफ्यूज करने के बारे में विस्तार से बताया है.
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ग्राउंड जीरो पर पहुंची ETV BHARAT की टीम
बस्तर पुलिस में तैनात BDS की टीम पिछले लंबे समय से बस्तर में अपनी सेवा दे रही है. खासकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली आईईडी और प्रेशर बम को ढूंढ निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. आखिर किस तरह से यह BDS (bomb disposal squad) की टीम बम को डिफ्यूज करने में अपनी भूमिका निभाती है. यह जानने ईटीवी भारत की टीम बम निरोधक टीम के साथ ग्राउंड रिपोर्टिंग करने पहुंची.
BDS टीम के डॉग टफी ने खोजा बम
पुलिस को सूचना मिली थी कि शहर से लगे कुरंदी के जंगलों में नक्सलियों ने आईईडी लगाया है. जिसके बाद बम निरोधक दस्ता इलाके के लिए बुलेट प्रूफ वाहन में निकल पड़ी. BDS की टीम में स्निफर डॉग टफी भी शामिल है. डॉग टफी बस्तर पुलिस की BDS टीम में पिछले 6 सालों से बम को खोज निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है. टीम जब कुरंदी के जंगलों में अपने पूरे संसाधनों के साथ पहुंची. बम की जानकारी मिलने के अनुसार इलाके की छानबीन करने लगी. जिसके बाद संदेह के आधार पर गीली जमीन को देखकर स्निफर डॉग टफी को लाया गया. बस कुछ ही मिनटों में टफी ने बम को खोज निकाला. बीडीएस के टीम द्वारा बड़ी सावधानी पूर्वक बम को डिफ्यूज किया गया. इस दौरान किसी प्रकार कोई हताहत नहीं हुआ. हालांकि यह एक मॉकड्रिल था.
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मॉकड्रिल में बम डिफ्यूज की पूरी प्रक्रिया
यह पूरा घटनाक्रम बस्तर एसपी के निर्देश पर किया गया. इस मॉकड्रिल में बखूबी बीडीएस की टीम ने दिखाया कि बम की सूचना मिलने पर किस तरह से टीम काम करती है. मौके पर पहुंचकर अपनी जान हथेली में रख बम को डिफ्यूज करती है. उनकी कोशिश यही रहती है कि बिना किसी नुकसान के प्रेशर बम और आईईडी को सावधानी के साथ डिफ्यूज किया जाए.
स्निफर डॉग की भूमिका अहम
BDS टीम के सदस्य आरक्षक महेंद्र सिंह साहनी ने बताया कि पिछले डेढ़ साल में बीडीएस की टीम ने बस्तर जिले के अलग-अलग इलाके से तीन आईईडी को सावधानीपूर्वक निकाल के डिफ्यूज किया है. वहीं अगर पिछले 5 सालों की बात की जाए तो 25 से अधिक आईईडी BDS की टीम ने डिफ्यूज किया है. उन्होंने बताया कि BDS की टीम में कुल 7 सदस्य हैं. बस्तर पुलिस की ओर से पर्याप्त संसाधन भी मिले हैं. टीम में दो स्निफर डॉग हैं. जिनका नाम टफी और राका है. बम खोजने में इन दोनों डॉग की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रहती है.
BDS टीम में आरक्षक और डॉग हैंडलर लोकनाथ कश्यप ने बताया कि बस्तर में तैनात स्निफर डॉग टफी और राका पिछले 6 सालों से सेवा दे रहे हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि स्निफर डॉग टफी के सहयोग से टीम ने 10 से भी अधिक बम खोज निकाले हैं. पूरी तरह से ट्रेंड स्निफर डॉग बीडीएस टीम का सबसे महत्वपूर्ण अंग है. सभी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बम खोज निकालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं.
जोखिम भरा है बस्तर में बम डिफ्यूज करना
आरक्षक महेंद्र साहनी ने बताया कि कई बार बम निकालना टीम के लिए बेहद जोखिम भरा भी रहता है. क्योंकि नक्सली अधिकतर प्रेशर और आईडी बम में तांबे की तार इस्तेमाल कर रहे हैं. तार काफी बारीक होती है. अगर इस तार में धोखे से भी हाथ लग जाए तो बम तुरंत ब्लास्ट हो जाता है. इस वजह से बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बम निकालना काफी जोखिम भरा होता है. हालांकि BDS की टीम ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जितने भी बम डिफ्यूज किए हैं उसमें उन्हें सफलता मिली है.
बता दें बस्तर संभाग के सात जिलों में बीडीएस की टीम तैनात है. जिला पुलिस बल के अलावा अर्धसैनिक बलों के पास भी बीडीएस टीम है. टीम जान जोखिम में डालकर बम निकालने में माहिर है. वहीं इस BDS टीम में स्निफर डॉग्स का महत्वपूर्ण योगदान होता है.
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IED नक्सलियों का बड़ा हथियार
सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए नक्सली IED की मदद ले रहे हैं. कई मामलों में नक्सली कामयाब भी हो रहे हैं. हालांकि साल 2020 में पुलिस जवानों ने 200 से भी ज्यादा IED बरामद कर निष्क्रिय किया था. हाल के दिनों में कई जवान IED की चपेट में आकर घायल हुए हैं. नाराणयपुर में नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट के जरिए जवानों से भरी बस को उड़ा दिया था. जिसमें 5 जवानों की मौत भी हुई थी.