जगदलपुर:आदिवासी बाहुल्य बस्तर में वनोपज ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार माना जाता है. यहीं वजह है कि बस्तर में 60 फीसदी से अधिक आदिवासी बस्तर की वनोपज पर पूरी तरह से आश्रित है. खासकर बस्तर की इमली की विदेशों में काफी डिमांड है. बस्तर में खट्टी इमली के साथ-साथ मीठी इमली की भी काफी डिमांड है. वन विभाग इसकी खरीददारी करने की तैयारी कर रहा है.
विश्व बाजार में थाईलैंड की मीठी इमली की धाक है, लेकिन अब बस्तर की गुड़हा इमली इसे चुनौती दे रही है. वन विभाग बस्तर की गुड़हा इमली की पैकेजिंग और मार्केटिंग की तैयारी में है. संजीवनी मार्ट के माध्यम से इसे बेचने का भी फैसला लिया गया है.
40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से होगी बिक्री
अभी कुछ दिन पहले बस्तर जिले के दरभा वन परिक्षेत्र के कनकापाल गांव में गुड़हा इमली की पहली खरीदी की गई है. तीन दिवसीय प्रवास पर बस्तर पहुंचे अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक बी. आनंद बाबू ने दरभा रेंज के चिंगीतरई गांव में इसके बारे में जानकारी ली थी. वन विभाग इस परिक्षेत्र के कनकापाल में लगभग 75 किलो गुड़हा इमली की खरीदी कर इस नए कारोबार की शुरुआत की है. बताया जा रहा है कि यह इमली प्रति किलो 40 रु की दर से महिला स्व-सहायता समूह खरीदेगा. इन समूहों को दोगुना कमीशन भी दिया जाएगा. छत्तीसगढ़ वन्यजीव बोर्ड के सदस्य और बस्तर वनोपज के जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं बस्तर के लगभग हर गांव में 2 से चार गुड़हा इमली के पेड़ हैं. अब तक इसे सामान्य दर पर ही खरीदा बेचा गया है, लेकिन अब इसकी मार्केटिंग की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है.
20 अरब का कारोबार
हेमंत कश्यप कहते हैं, मंडी कार्यालय के मुताबिक बस्तर संभाग में सालाना लगभग 20 अरब रुपये की इमली का कारोबार होता है. बस्तर की इमली खाड़ी देशों के साथ दुनिया के 12 देशों को निर्यात की जाती है. बस्तर में खट्टी और मीठी दोनों इमली मिलती है. मीठी इमली यहां गुड़हा इमली के नाम से चर्चित है. खट्टी इमली की डिमांड हर साल रहती है, लेकिन गुड़हा इमली को आजतक बाजार नहीं मिल पाया है. यहां के लोग लंबे समय से इस इमली की अलग से खरीद-बिक्री की मांग करते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि इसके एक वृक्ष से औसतन 3 क्विंटल इमली मिल जाती है.