जगदलपुर: बस्तर के एक 74 साल के आदिवासी किसान ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम काम किया है. इस किसान ने गांव से लगी बंजर जमीन पर हरियाली फैला दी है. गांव की 400 एकड़ जमीन पर जंगल बसा दिया है. हालांकि इस काम के लिए इस किसान को 46 साल का संघर्ष करना पड़ा.
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आदिवासी किसान दामोदर कश्यप की पहल की सराहना की है. उन्होंने कहा कि उनके प्रयासों से न केवल संघ करमारी गांव में वनीकरण हुआ, बल्कि आसपास के गांवों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा. कश्यप के लिए बकावंड ब्लॉक में उनके गांव संघ करमारी में जंगल एक अभयारण्य है, जिसे उन्होंने पूरे समुदाय को शामिल करके दशकों के निरंतर प्रयासों से विकसित किया है.
हरियाली बहाल करने की पहल: दामोदर कश्यप ने कहा, 'जब मैं 1970 में जगदलपुर से 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर गांव लौटा. यहां मैं देखकर हैरान रह गया कि हमारे घर के पास के करीब 300 एकड़ जंगल को काफी नुकसान पहुंचा है. जो कभी हरा-भरा जंगल हुआ करता था, वह अब चंद पेड़ों में सिमट कर रह गया है.'' इस स्थिति से परेशान कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने और गांव में हरियाली बहाल करने का फैसला किया.
जंगलों को बचाने बनाए सख्त नियम: शुरुआत में दामोदर द्वारा ग्रामीणों को पेड़ों को काटने से रोकने के लिए राजी करने में कठिनाई हुई. क्योंकि वे अपने दैनिक जीवन में उन पर निर्भर थे. लेकिन लोग धीरे-धीरे जंगल के महत्व को समझने लगे. 1977 में गांव के सरपंच चुने जाने के बाद कश्यप ने जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए सभी प्रयास किए. उनके बेटे तिलक राम ने कहा कि "अपने कार्यकाल के दौरान कश्यप ने सख्त नियम बनाए और जंगल के विनाश के लिए जुर्माना भी लगाया."
थेंगा पाली प्रणाली की शुरुआत: पंचायत ने 'थेंगा पाली' प्रणाली की शुरुआत की, जिसके तहत पेड़ों की अवैध कटाई को रोकने के लिए गांव के किन्हीं तीन लोगों को हर दिन गश्त और जंगल की रखवाली के लिए तैनात किया गया था. इसके अलावा, कश्यप ने जंगल की रक्षा के लिए स्थानीय मान्यताओं और प्रथाओं का भी इस्तेमाल किया.