जगदलपुर: 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की अंतिम डोली विदाई की रस्म शनिवार को पूरी की गई. शहर के गीदम रोड में स्थित जिया डेरा मंदिर में मां मावली माता को माटी पुजारी, बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव और दशहरा समिति के साथ, स्थानीय लोगों ने पूजा अर्चना कर दंतेवाड़ा के लिए विदा किया. इस मौके पर दंतेश्वरी मंदिर से लेकर जिया डेरा मंदिर तक युवतियों और महिलाओं ने कलश यात्रा निकाली. माता की डोली को विदा करने के लिए शहर में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा. परंपरा के मुताबिक इस महत्वपूर्ण रस्म अदायगी के बाद ही बस्तर दशहरा पर्व का समापन होता है.
कालांतर समय से बस्तर के राजा अन्नमदेव बस्तर दशहरा के इस आखिरी रस्म में मावली माता की डोली को विदाई देने राज महल से करीब 3 किलोमीटर तक पैदल चलकर जिया डेरा मंदिर में माता की पूजा अर्चना कर विदाई देते थे. आज भी इस रस्म को विधि विधान से निभाया जाता है. गाजे-बाजे और आतिशबाजीयों के बीच माता की डोली को सम्मान स्वरूप पुलिस के जवानों ने बंदूक से फायर कर सलामी दी. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने मावली माता की विधि विधान से पूजा अर्चना कर डोली को दंतेवाड़ा के लिए विदा किया.
देवी-देवताओं को किया गया विदा
बस्तर राजकुमार ने बताया कि बस्तर दशहरा की कुटुंब जात्रा रस्म और डोली विदाई रस्म के दौरान बस्तर के सभी गांवों से पहुंचे देवी देवताओं के छत्र और डोली की विधि विधान से पूजा अर्चना कर उन्हें ससम्मान विदा किया जाता है. कुटुंब जात्रा के दौरान बस्तर संभाग के सभी गांव से पहुंचे देवी देवताओं को बुधवार को विदा किया गया. इसके बाद शनिवार को मावली माता की डोली की विधि विधान से पूजा अर्चना करने के बाद उन्हें दंतेवाड़ा के लिए विदा किया गया. हालांकि जगदलपुर से दंतेवाड़ा तक पहुंचने के लिए मावली माता की डोली को 1 दिन का समय लगता है. 90 किलोमीटर के सफर में रास्ते भर माता की डोली को ग्रामीणों के दर्शन के लिए रोका जाता है, इसलिए ऐसे में डोली को दंतेवाड़ा पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं.
माता की रही कृपा: कमलचंद भंजदेव
राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने कहा कि बस्तर दशहरा के दौरान माता की कृपा रही कि जिला प्रशासन ने जितने भी रैंडम कोविड टेस्ट किए वे सभी निगेटिव आए. इस दशहरा पर्व को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में जिला प्रशासन का भी अच्छा सहयोग रहा. साथ ही पूरे रस्मों को विधि विधान से संपन्न कराया गया.