जगदलपुर:बस्तर जिले में प्रशासन सुरक्षित प्रसव एवं सुपोषण के लाख दावे करे लेकिन नवजात बच्चों की मृत्यु दर में इजाफा ही हो रहा है. अप्रैल महीने से लेकर 30 नवंबर तक बीते 8 माह में जिला अस्पताल समेत सीएचसी व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 300 से ज्यादा शिशुओं और 8 महिलाओं की मृत्यु हुई है. छत्तीसगढ़ में बस्तर जिला शिशु मृत्यु दर के मामले में चौथे सबसे बड़े जिले में शामिल हो गया है.
संस्थागत प्रसव बढ़े फिर भी नवजात मृत्यु दर में इजाफा
स्वास्थ्य अमला सुरक्षित प्रसव के लिए पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के दावे करता आया है. हर गांव में मितानिन की नियुक्ति समेत जननी सुरक्षा योजना के जरिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के दावे भी किए जाते है. शासन स्तर पर भी मातृ व शिशु मृत्यु दर रोकने पायलट प्रोजेक्ट चलाने के दावे भी किए जा रहे है, बावजूद इसके बस्तर संभाग में हर साल नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में तेजी से इजाफा हो रहा है. तमाम दावों के बाद भी आदिवासी अंचलों में नवजात बच्चे मौत के मुंह में क्यों समा रहे हैं, ये बड़ा सवाल बना हुआ है.
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8 माह में 300 से ज्यादा नवजात की मौत
स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक बीते अप्रैल माह से लेकर 30 नवंबर तक जिले में कुल 300 से अधिक शिशुओं की मृत्यु हुई है. 8 महिलाओं की भी प्रसव के दौरान मौत हुई है. चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का एनीमिक होना है. सुदूर अंचल क्षेत्रों में गरीबी इसकी एक प्रमुख वजह है. कुपोषण और गर्भ के दौरान पौष्टिक आहार विहार का अभाव एक महत्वपूर्ण कारण है.
महिलाओं में जागरूकता की कमी
ETV भारत से बातचीत के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं मितानिन और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह नहीं मानती है. गर्भावस्था के दौरान आयरन व कैल्शियम की दवा समेत पौष्टिक आहार नहीं लेती है. इसके चलते प्रसव के दौरान शिशु की मौत की आशंका बढ़ जाती है. चिकित्सकों की मानें तो महिलाओं में खून की कमी ब्लड प्रेशर और ब्लीडिंग टेंडेंसी शिशु मृत्यु के कारकों में से एक है.