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पहले ही दिन फेल हो गई भूपेश सरकार की सोया दूध योजना, जानें कैसे - गरियाबंद न्यूज

जिले के केराबहरा में पहले ही दिन सवालों के घेरे में आ गई भूपेश सरकार की सोया दूध अमृत योजना. बच्चों को दिए जाने वाला पौष्टिक सोया दूध कहीं बद्बूदार, तो कहीं दही से भी गाढ़ा निकला. सोचने वाली बात, तो ये है कि जो दूध 90 दिन तक इस्तेमाल में लाया जा सकता था, वो महज 20 दिन में ही कैसे खराब हो गया.

योजना के पहले दिन ही खराब निकला दूध

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Published : Sep 19, 2019, 1:50 PM IST

गरियाबंद: राज्य शासन की सबसे नवीनतम मुख्यमंत्री सोया दूध अमृत योजना अपने पहले दिन ही फेल हो गई. यह योजना खामी की भेंट चढ़ गई है. स्कूली बच्चों को सोयाबीन का दूध पिलाने शुरू की गई इस योजना के तहत भेजे गए कई दूध के पैकेट खराब निकले. एक्सपायरी डेट नहीं होने के बावजूद भेजा गया दूध कहीं बदबूदार, कहीं फटा हुआ, तो कहीं दानेदार निकला. इसे देखते हुए कई स्कूलों ने दूध फेंकवा दिया. केराबहरा गांव में 7 पैकेट दूध खोला गया जिसमें 5 पैकेट खराब निकला. वहीं दर्रीपारा में भी 2 पैकेट दूध दानेदार निकला. शिक्षकों की सतर्कता के चलते बच्चों को खराब दूध नहीं दिया गया.

राजिम विधायक ने योजना का शुभारंभ किया
शासन ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर गरियाबंद समेत 4 जिलों में मुख्यमंत्री अमृत सोया दूध योजना का शुभारंभ 2 दिन पहले ही किया है. जिले में योजना का शुभारंभ राजिम विधायक अमितेश शुक्ला ने स्कूल में बच्चों को दूध पिलाकर किया, लेकिन दूध वितरण के पहले ही दिन जिले के 2 स्कूलों से दूध खराब निकलने की शिकायत मिलीं. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर केराबाहर गांव में जब शिक्षकों ने बच्चों को दूध पिलाने पैकेट खोला, तो उसमें से दही से भी गाढ़ा पेस्ट के जैसा सफेद पदार्थ निकला, जिसमें दुर्गंध आ रही थी.

पहले ही दिन फेल हो गई भूपेश सरकार की सोया दूध योजना

पहले दिन ही योजना हुई फेल
खराब दूध की जानाकारी शिक्षकों ने फौरन समन्वयक को दी. इसके बाद बच्चों को नए पैकेट ढूंढकर दूध पिलाया गया. कुल मिलाकर पहले दिन ही सरकार की इस योजना का कबाड़ा हो गया. दूध खराब होने खबर लगते ही स्कूल में बच्चों के पालकों की भीड़ लग गई. महिलाों ने पहले ही दिन खराब दूध भेजे जाने को लेकर शासन को जमकर कोसा. दूध सामान्य से कुछ ज्यादा ही गाढ़ा देखकर शिक्षकों ने उस दूध को नहीं पिलाया और दूध को अलग बाल्टी में रखवा दिया अगले दिन उस दूध को फेंक दिया गया.

भला हो शिक्षकों का : पवन कुमार
पालक पवन कुमार का कहना है कि सरकार को किसी भी योजना को इस तरह लापरवाही से लागू नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की तबीयत खराब हो जाए. भला हो शिक्षकों का जिन्होंने बच्चों को देने की बजाय पहले खुद पिया और चेक किया. खराब दूध के चलते बच्चों के पेट खराब हो सकते थे और वे बीमार भी पड़ सकते थे.

निरिक्षण करके ही दूध परोसने कहा गया
मामले में समन्वयक त्रिवेंद्र संकुल का कहना है कि शिक्षकों को पहले से ही ये कहा गया था कि दूध का पहले बारीकी से निरीक्षण कर खुद चखकर देखें. इसके बाद यदि दूध पिलाने लायक लगे तभी बच्चों को पिलाएं.

90 दिन के बजाय 20 दिन में ही खराब
पते कि बात तो ये है कि सोया दूध का मैन्युफैक्चरिंग डेट 27 अगस्त लिखा गया है, और 90 दिन के भीतर इस्तेमाल लायक बताया गया है, लेकिन महज 20 दिनों में ही दूध का खराब हो जाना कंपनी पर सवालिया निशान खड़ा करता है. हालांकि संकुल समन्वयक का कहना है कि हमें 45 दिन के भीतर दूध पिलाने के निर्देश हैं, लेकिन फिर भी महज 20 दिन में दूध का इस तरह खराब हो जाना ये सोचने वाली बात है.

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