गरियाबंद: छत्तीसगढ़ के कुछ ग्रामीण इलाके ऐसे हैं, जहां आने-जाने का साधन न होने की वजह से लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है. गरियाबंद वैसे तो जिला बन चुका है लेकिन यहां के लोग सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. जिला मुख्यालय से दूर कई गांव ऐसे हैं, जहां कनेक्टिविटी खराब है. आने-जाने के लिए बस नहीं चलती. लोग या तो निजी वाहन से सफर करते हैं या फिर रूट पर चलने वाले जीप और ऑटो उनका सहारा होती हैं. कोरोना के दौरान किराया बढ़ गया, ऐसे में ग्रामीणों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है.
गरियाबंद के नेशनल हाईवे से लगे गांवों में जाने के लिए यात्री बस तो चलती है. लेकिन जिला मुख्यालय के दूरस्थ गांवों में यह यात्री बस नहीं जाती. और कुछ बस जो ऐसे क्षेत्रों में जाती थी, वो भी कोरोनाकाल के बाद से यात्रियों की कमी के चलते नहीं जा रही है. ऐसे में अंदरूनी क्षेत्रों में जाने के लिए ग्रामीणों के पास जीप, ऑटो, टैक्सी जैसे विकल्प ही बचते हैं.
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लॉकडाउन के पहले भी ऐसे क्षेत्रों में दर्जनों टैक्सी और जीप चलते थे. ग्रामीणों के आवागमन के लिए ये काफी सुविधाजनक था लेकिन अब हालात ये हैं कि मुश्किल से दिन भर में एक या दो गाड़ियां चल रही है. वहीं लॉकडाउन के बाद से जीप और टैक्सी चालकों ने किराए में बढ़ोत्तरी कर दी है. ऐसे में गरीब ग्रामीणों के लिए यह परेशानी से कम नहीं है.
विरोध नहीं कर पा रहे ग्रामीण
गरियाबंद के छुरा, नगरी-सिहावा, दरीपारा खुर्सीपार, धवलपुर इलाके के दर्जनभर अंदरूनी गांव के ग्रामीणों ने बताया कि पहले मुख्य शहर जाने के लिए ग्रामीणों को 30 रुपए किराया देना पड़ता था. लेकिन अब 40 रुपए किराया देना पड़ता है. जिन ग्रामीणों के पास खुद का साधन नहीं है, वे ज्यादा किराए देकर सफर करने को मजबूर हैं. किराए के लिए अतिरिक्त राशि के बोझ तले दबते ग्रामीण इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं.