गरियाबंद : राजिम को छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी के नाम से जाना जाता है. राजिम में महानदी के तट पर राजीव लोचन मंदिर परिसर से लगी सीताबाड़ी है. राजिम को धर्म नगरी और लोक कला संस्कृति का गढ़ कहा जाता है. राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का पवित्र संगम स्थल त्रिवेणी है. इसी त्रिवेणी संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुलेश्वर महादेव के संबंध में कहा जाता है कि 14 साल के वनवास काल में माता सीता ने संगम स्थल में स्नान कर अपने कुल देवता की नदी के रेत से विग्रह बनाकर पूजा अर्चना की थी. इसी कारण उनका नाम कुलेश्वर महादेव है.
राजिम छत्तीसगढ़ के लिए जन आस्था का केन्द्र है, यहां हर साल माघी पुन्नी मेला से महाशिवरात्रि तक विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यहां देश-विदेश से साधु-संतों एवं दर्शनार्थियों का शुभागमन होता है. कुलेश्वर महादेव मंदिर के पास लोमश ऋषि का आश्रम है. उसी के समीप एक महीने तक लोग कल्पवास करते हैं. राजिम क्षेत्र को छत्तीसगढ़ की पंचकोशी परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है. पंचकोशी परिक्रमा में 5 स्वयंभू शिवलिंग की लोग साधना पूर्वक परिक्रमा करते हैं, जिनमें प्रमुख श्री कुलेश्वर महादेव, राजिम, पठेश्वर महादेव, पटेवा, चम्पेश्वर महादेव, चंपारण, फणिकेश्वर महादेव, फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा है.
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छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति का दर्शन
राजिम पुरातत्वों एवं प्राचीन सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है, यहां भगवान श्री राजीव लोचन की भव्य प्रतिमा स्थापित है. सीताबाड़ी में उत्खन्न कार्य किया रहा है, जिसमें सम्राट अशोक के काल का विष्णु मंदिर, मौर्य कालीन अवशेष, 14वीं शताब्दी का स्वर्ण सिक्का, अनेक मूर्तियां और सिंधुघाटी सभ्यता से जुड़ी अनेक कलाकृतियां मिल रही हैं. राजिम माघी पुन्नी मेला महोत्सव में पूरे छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति का दर्शन होता है.
लोमश ऋषि आश्रम में ठहरे थे रामचन्द्र