गरियाबंद: छत्तीसगढ़ संस्कृति, तीज और त्योहारों का प्रदेश है. गरियाबंद जिले में हरेली पर्व (Hareli Tihar) धूमधाम से मनाया गया. हरेली खासतौर पर किसान और प्रकृति का त्योहार है. सावन की पहली अमावस्या पर पड़ने वाले हरेली तिहार के दिन किसान अपने पशुओं, कृषि उपकरणों की पूजा कर उनका आभार जताते हैं. इस दिन गेड़ी का खासा महत्व होता है. गेड़ी चढ़ना अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब कम होती जा रही है. इस हरेली पर ETV भारत आपको गेड़ी और इसके महत्व के बारे में बता रहा है.
हरेली के दिन गांवों में हर तरफ गेड़ी चढ़ते (Gedi dance on Hareli Tihar ) बच्चे और जवान नजर आते हैं. माना जाता है कि पुरातन समय में जब गलियां केवल मिट्टी की हुआ करती थी तो भरी बरसात में होने वाला त्यौहार हरेली में कीचड़ से भरी गलियों में बिना जमीन में पैर रखे बिना कीचड़ लगे गेड़ी दौड़ होती थी. परंपराओं के जानकार कृष्ण कुमार शर्मा बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के कुछ त्योहार आदिकाल से मनाया जाता रहा है. गेड़ी दौड़ या गेड़ी नृत्य स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है. इससे बच्चों का शारीरिक विकास होता है. हरेली के दिन किसान अपने उपकरणों की पूजा करते हैं.
गांव के बुजुर्ग जो कि गेड़ी बनाते हैं उनका कहना है कि गेड़ी की परंपरा अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है. लेकिन इस परंपरा को बचाने के लिए वे अभी भी गेड़ी बना रहे हैं. लोकगीत के माध्यम से वे बताते हैं कि ' नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी की धुन में गरवा चरैया नंदा जाहि का, गेड़ी के मचैया नंदा जाहि का, नंदा जाहि का रे, नंदा जाहि का, बांसुरी के खवैया नंदा जाहि का'.
गरियाबंद के किसान ताराचंद साहू बताते हैं कि हरेली के त्योहार के दिन वे अपने औजार नांगर-गैती-रांपा की पूजा करते हैं. उनका मानना है कि यह त्योहार प्रकृति को वापस लौटाने का है. इसदिन वे अपने बैलों की, अपने औजारों की पूजा कर आभार व्यक्त करते हैं. किसान इस दिन भगवान इंद्र की भी पूजा करते हैं. वे मानते हैं कि भगवान इंद्र के खुश होने से उन्हें अच्छी फसल मिलेगी और उनके घर-परिवार में सुख शांति आएगी.
गेड़ी का खास महत्व