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छत्तीसगढ़ में लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन निभाई जाती है ये खास परंपरा

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Published : Oct 28, 2019, 5:02 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 7:12 PM IST

प्रदेश में दीपावली के दूसरे दिन यानि गोवर्धन पूजा पर गौरा-गौरी पूजन की परंपरा कई सालों से चली आ रही है.

गौरा-गौरी पूजन

गरियाबंद : दीपावली पांच दिनों तक मनाया जाने वाला भारत का सबसे बड़ा त्योहार है. लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा के दिन गौरा-गौरी पूजन की भी परंपरा है.

गौरा-गौरी पूजन की परंपरा

प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में आदिवासी समाज के लोग इसे खासा महत्व देते हैं, लेकिन शहर के ज्यादातर क्षेत्रों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है. अलग-अलग मोहल्लों में स्थापित किए गए गौरा चौरा में लक्ष्मी पूजा के बाद मंडप सजाया जाता है. यहां देर रात भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति बनाई जाती है और उसके बाद भगवान शिव की बारात निकाली जाती है, जिसके बाद गौरा-गौरी का विवाह संपन्न कराया जाता है.

पूजा-पाठ के बाद किया जाता है विसर्जन

विवाह के बाद महिलाएं सिर पर कलश रखकर निकलती हैं, इसके बाद गोवर्धन पूजा से पहले गाजे-बाजे के साथ शोभा यात्रा निकालकर भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति को पूजा-पाठ के बाद विसर्जित किया जाता है.

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वहीं कई अंचलों में शिव और पार्वती को ईसर राजा और ईसर रानी कहा जाता है. माना जाता है कि गौरा-गौरी की पूजा से सारे दुख दूर हो जाते हैं. इस दिन गढ़वा बाजा बजाने की विशेष परंपरा भी है, जो सालों से चली आ रही है. प्रदेशभर में बीती रात लक्ष्मी पूजा के बाद गौरा-गौरी विवाह की परंपरा पूरी की गई. वहीं इस आयोजन में सैकड़ों की संख्या में महिला, पुरुष और बच्चे शामिल हुए.

Last Updated : Oct 28, 2019, 7:12 PM IST

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