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SPECIAL: भूगर्भ से उत्पन्न हुए देवबलोदा के शिवजी, जानें मंदिर के पीछे की कहानी - देवबलोदा में महाशिवरात्रि पर लगता है मेला

महाशिवरात्रि के पर्व पर देश-प्रदेश भगवान भोलेनाथ के जयकारों से गूंज उठा है. ऊँ नमः शिवाय की ध्वनि गुंजायमान हो रही है. महाशिवरात्रि के दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा-अर्चना में जुटे हैं. आज इस अवसर पर हम आपको दुर्ग से 22 किलोमीटर दूर स्थित देवबलोदा गांव के प्राचीन शिव मंदिर की कहानी बतलाने जा रहे हैं.

Shiva temple of Devbaloda durg
देवबलोदा का शिव मंदिर

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Published : Mar 11, 2021, 2:34 PM IST

Updated : Mar 11, 2021, 3:02 PM IST

दुर्ग: हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है. इस साल महाशिवरात्रि 11 मार्च को मनाई जा रही है. इसे भगवान शिव और माता शक्ति के मिलन की रात माना जाता है. यानी प्रकृति और पुरुष के मिलन की घड़ी... वहीं माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रकट हुए थे.

भूगर्भ से उत्पन्न हुए देवबलोदा के शिवजी, जानें मंदिर के पीछे की कहानी

आज महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हम आपको देवबलोदा गांव के प्राचीन शिव मंदिर की महिमा बताने जा रहे हैं. दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर देवबलोदा गांव है, जहां भगवान शिव का एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जो माना जाता है कि स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं-13 वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर का निर्माण 6 महीने में एक मूर्तिकार ने किया था, इसलिए इस मंदिर को छहमासी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

देवबलोदा का शिव मंदिर

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कलचुरी काल में मंदिर का हुआ था निर्माण

कलचुरी राजवंश में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. बलुआ प्रस्तर से बने इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसका शिखर ही नहीं है. खजुराहो की तर्ज पर शिव के कामान्तर रूप और कई देवी-देवताओं की नक्काशीदार प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र हैं. देवबलोदा के इस प्राचीन मंदिर की बनावट बहुत दर्शनीय है. नागर शैली में बने इस मंदिर में विष्णु के दशावतार, गणेश, सरस्वती, शिव-पार्वती, महिषासुरमर्दिनि सहित पांच पांडवों, भैरव, कर्ण-अर्जुन युद्ध आदि कई विशेष प्रसंगों को मूर्तियों में दर्शाया गया है. ऐसे में पर्यटन और पुरातत्व की दृष्टि से इस मंदिर की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है.

देवबलोदा का शिव मंदिर
महाशिवरात्रि पर लगता है मेला

पिछले कई वर्षों से शिवरात्रि पर लगने वाले 2 दिवसीय मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम खास होते हैं. मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ जुटती है. सिद्ध शिव मंदिर में श्रावण महीने में क्षेत्र के श्रद्धालु सुबह से जल चढ़ाने के लिए यहां पहुंच जाते हैं. सावन में महीनेभर भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है. इस मंदिर में कई श्रद्धालु रुद्राभिषेक भी कराते हैं. कुछ लोग सावन में रामायण पाठ भी करते हैं. सावन में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है. मंदिर से लगे कुंड का पानी गर्मी में भी नहीं सूखता है.

देवबलोदा का शिव मंदिर

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मंदिर के बगल में ही कुंड बना हुआ है, जिसमें सीढ़ियां बनी हुई हैं. बावड़ीनुमा इस कुंड की खासियत है कि गर्मी के दिनों में भी इसका पानी नहीं सूखता. गांववाले बताते हैं कि इस कुंड को पत्थरों से बांधा गया है. मंदिर से 7 सोपान उतरने पर तालाब तक पहुंचा जा सकता है. कुंड में असंख्य मछलियां हैं. कुंड में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिसकी संख्या लगभग 22 है. इसके साथ ही कुंड के अंदर सुरंग जैसा एक छेद है. कहा जाता है कि यह आरंग तक जाता है. कुंड में पानी भी वहीं से आने की मान्यता है.

देवबलोदा का शिव मंदिर

6 महीने में किया मंदिर का निर्माण

ग्रामीण गोविंद यादव बताते हैं कि कलचुरी काल में प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण 6 महीने की रात में किया गया था और मूर्तिकार जब भी मंदिर का निर्माण करता था, उस वक्त नग्न अवस्था में ही रहता था. उसकी पत्नी उसके लिए खाना लेकर आया करती थी, लेकिन किसी कारणवश एक रात उसकी पत्नी की जगह उसकी बहन खाना लेकर आई. चूंकि शिल्पकार उस समय नग्न अवस्था में मंदिर का निर्माण कर रहा था, तो अपनी बहन को देख वो शर्मिंदा हो गया और मंदिर के कुंड में कूदकर वहां बने सुरंग के जरिए आरंग में निकल गया. ग्रामीण बताते हैं कि भाई के कुंड में कूद जाने के बाद उसकी बहन को लगा कि मेरी वजह से मेरे भाई ने जान दे दी. यह सोचकर उसने भी मंदिर के बगल में करसा तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी, जिसका निशान तालाब में एक पत्थर के पिलर रूपी बीम के रूप में मौजूद है.

मंदिर में दो सफेद नागों का जोड़ा

गांव के ही एक युवक भीषण साहू बताते हैं कि बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि इस प्राचीन मंदिर में दो सफेद नागों का जोड़ा भी रहता है और कभी-कभी लोगों को दिखाई देता है. लोगों ने तो उस नाग के जोड़े को भगवान के शिवलिंग पर भी बैठे हुए भी देखा है. यह नाग का जोड़ा पहले अक्सर दिखाई दिया करता था, लेकिन अब दिखाई देना बंद हो गया है. उन्होंने बताया कि दर्शन करने आने वालों को नाग का जोड़ा कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था.

देवबलोदा का शिव मंदिर

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मनोकामना होती है पूर्ण

मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर में अगर कोई भक्त मनोकामना मांगता है, तो वो भगवान शिव जरूर पूरा करते हैं. गर्भ गृह में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग भूरे रंग का है. इस शिवलिंग को मनोकामना शिवलिंग के रूप में भी पूजा जाता है. मान्यता है कि यहां मांगी गई मुराद पूरी होती है. भिलाई से दर्शन करने आए चंद्रभूषण साहू बताते हैं कि वे बचपन से ही इस प्राचीन शिव मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे हैं. इस मंदिर में उनकी आस्था काफी गहरी है. उनका मानना है कि यहां आकर जो भी मनोकामनाएं मांगी, वो पूरी हुई हैं. उन्होंने बताया कि दूर-दूर से लोग अपनी मुरादें मांगने के लिए शिव मंदिर में आते हैं. उनकी मुरादें भी इस मंदिर में पूरी होती हैं.

देवबलोदा का शिव मंदिर

महाशिवरात्रि में लगता है दो दिवसीय मेला

देवबलोदा के इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व होने की वजह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे अपने संरक्षण में ले लिया है. इसके साथ ही शिवरात्रि पर यहां 2 दिन का बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. लेकिन कोरोना काल की वजह से इस बार यह मेला नहीं लग रहा है.

Last Updated : Mar 11, 2021, 3:02 PM IST

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