दुर्ग: हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है. इस साल महाशिवरात्रि 11 मार्च को मनाई जा रही है. इसे भगवान शिव और माता शक्ति के मिलन की रात माना जाता है. यानी प्रकृति और पुरुष के मिलन की घड़ी... वहीं माना जाता है कि आज ही के दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रकट हुए थे.
आज महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर हम आपको देवबलोदा गांव के प्राचीन शिव मंदिर की महिमा बताने जा रहे हैं. दुर्ग जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर देवबलोदा गांव है, जहां भगवान शिव का एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जो माना जाता है कि स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12वीं-13 वीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर की खास बात यह है कि मंदिर का निर्माण 6 महीने में एक मूर्तिकार ने किया था, इसलिए इस मंदिर को छहमासी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.
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कलचुरी काल में मंदिर का हुआ था निर्माण
कलचुरी राजवंश में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. बलुआ प्रस्तर से बने इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसका शिखर ही नहीं है. खजुराहो की तर्ज पर शिव के कामान्तर रूप और कई देवी-देवताओं की नक्काशीदार प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र हैं. देवबलोदा के इस प्राचीन मंदिर की बनावट बहुत दर्शनीय है. नागर शैली में बने इस मंदिर में विष्णु के दशावतार, गणेश, सरस्वती, शिव-पार्वती, महिषासुरमर्दिनि सहित पांच पांडवों, भैरव, कर्ण-अर्जुन युद्ध आदि कई विशेष प्रसंगों को मूर्तियों में दर्शाया गया है. ऐसे में पर्यटन और पुरातत्व की दृष्टि से इस मंदिर की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है.
पिछले कई वर्षों से शिवरात्रि पर लगने वाले 2 दिवसीय मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम खास होते हैं. मंदिर में सुबह से ही भक्तों की भीड़ जुटती है. सिद्ध शिव मंदिर में श्रावण महीने में क्षेत्र के श्रद्धालु सुबह से जल चढ़ाने के लिए यहां पहुंच जाते हैं. सावन में महीनेभर भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है. इस मंदिर में कई श्रद्धालु रुद्राभिषेक भी कराते हैं. कुछ लोग सावन में रामायण पाठ भी करते हैं. सावन में पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है. मंदिर से लगे कुंड का पानी गर्मी में भी नहीं सूखता है.
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मंदिर के बगल में ही कुंड बना हुआ है, जिसमें सीढ़ियां बनी हुई हैं. बावड़ीनुमा इस कुंड की खासियत है कि गर्मी के दिनों में भी इसका पानी नहीं सूखता. गांववाले बताते हैं कि इस कुंड को पत्थरों से बांधा गया है. मंदिर से 7 सोपान उतरने पर तालाब तक पहुंचा जा सकता है. कुंड में असंख्य मछलियां हैं. कुंड में नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिसकी संख्या लगभग 22 है. इसके साथ ही कुंड के अंदर सुरंग जैसा एक छेद है. कहा जाता है कि यह आरंग तक जाता है. कुंड में पानी भी वहीं से आने की मान्यता है.