दुर्ग: छत्तीसगढ़ में पहली बार मजदूर दिवस कुछ अलग तरह से मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की जनता से बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाने की अपील की थी. इसके बाद सोशल मीडिया पर संदेशों की लाइन लगी हुई है. दरअसल चावल को जब पानी में डुबोकर खाया जाता है तो उसे बोरे कहते हैं. उस बोरे को दूसरे दिन खाने पर यह बासी कहलाता है. इस बार मजदूर दिवस पर दुर्ग में भी बोरे बासी उत्सव मनाया गया. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मजदूरों के साथ बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाया.
अधिकारी और कर्मचारियों ने खाई बोरे बासी: मजदूर दिवस पर दुर्ग में हर तबके के लोग बोरे बासी खा रहे हैं. दुर्ग रेंज के आईजी बद्री नारायण मीणा भी बोरे बासी खाते नजर आए. वहीं दुर्ग में एसपी अभिषेक पल्लव ने अपने अधिकारियों के साथ बोरे बासी खाया. तो वही दुर्ग कलेक्टर डॉक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने भी अपने परिवार के साथ बोरे बासी खाकर मजदूरों का सम्मान किया.
ऐसे बनता है बोरे बासी: बोरे और बासी बनाना बहुत ही सरल है. न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी की. खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है. बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है. यहां बोरे और बासी इसलिए कहा जाता है क्योंकि मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है. बोरे से अर्थ, जहां तुरन्त पके हुवे चावल को पानी में डूबाकर खाना है. वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर चावल को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है. फिर बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं.