दुर्ग: मेहनत करने के बावजूद ग्रामीणों को मनरेगा (MGNREGA) की मजदूरी समय पर नहीं मिल पा रही है. समय पर मजदूरी नहीं मिलने से ग्रामीणों में नाराजगी है. कई ग्रामीण ऐसे भी हैं, जिनका 2 साल पहले किए गए काम का पैसा अब तक नहीं मिल पाया है. वहीं कुछ ग्रामीण अब भी पंचायतों के चक्कर काट रहे हैं. कोरोना काल में ग्रामीणों को मजदूरी नहीं मिलने से अब उनके सामने भुखमरी के हालात हो गए हैं. इसमें धमधा, पाटन और दुर्ग विकासखंड के कई ग्रामीण शामिल हैं. जिनका मेहनताना नहीं मिल पाया है. प्रशासनिक अधिकारी दावा कर रहे हैं कि सभी का भुगतान किया जा चुका है. इस वित्तीय वर्ष का भुगतान होना बस बाकी है. इधर केंद्र सरकार ने मनरेगा पोर्टल में बदलाव कर दिया है. अब पोर्टल में एंट्री जातिवार हो रही है. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस नए बदलाव की वजह से श्रमिकों के कार्य दिवस से जुड़े भुगतान में देरी हो रही है.
जिले के पाटन ब्लॉक के तरीघाट ग्राम पंचायत के बल्लू राम ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्होंने 2 साल पहले मनरेगा के तहत मजदूरी का काम किया था, लेकिन अब तक उसका मेहनताना नहीं मिल पाया है. कई बार रोजगार सहायक अधिकारियों से वे संपर्क कर चुके हैं, पंचायत के भी चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन कुछ नहीं हुआ. मजदूर ने बताया कि संबंधित अधिकारी कहते हैं कि पैसा डाल दिया जाएगा, लेकिन अब तक पैसा नहीं मिल पाया. बल्लू ने बताया कि उसने 3 सप्ताह तक मनरेगा मजदूरी का काम किया है.
काम किया पूरा, मेहनताना मिला आधा
कई ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत काम करने वाले ग्रामीणों को आधा-अधूरा मेहनताना मिल रहा है. पाटन ब्लॉक के अरकार गांव की बिरझा निषाद बताती हैं कि उन्हें पूरे रुपये नहीं मिले हैं. जितने दिन उसने काम किया, उसका आधा पैसा ही मिला है. वह कहती हैं कि आधा मेहनताना मिलने पर जब पंचायत जाते हैं, तो वहां के अधिकारी उन्हें घुमा देते हैं. इतना ही नहीं पड़ोस के गांव में मार्च में उतना ही काम हुआ, लेकिन वहां बहुत से लोगों को पूरा पैसा मिला है. उन्होंने ईटीवी भारत के माध्यम से प्रशासन से सवाल किया कि मेहनत पूरा किए हैं, तो मेहनताना आधा क्यों दिया जा रहा?
MGNREGA के तहत चल रहे काम में कोरोना गाइ़डलाइन का पालन नहीं कर रहे मजदूर
मजदूरी की मांग पर अधिकारी करते हैं बदसलूकी
तरीघाट गांव की शांति बाई कहती है कि अप्रैल की मजदूरी का रुपया अब तक उन्हें नहीं मिला है. पिछले 2 सप्ताह से वह पंचायत के चक्कर काट रही है. मजदूरी के पैसे मांगने पर सहायिका बदसलूकी करती है. रुपये नहीं मिलने से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि दुर्ग जिला का अंतिम गांव होने की वजह से यहां अधिकारी भी बहुत कम आते हैं.
इस वित्तीय वर्ष की राशि लंबित