भिलाई: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर उनके रिश्तेदारों को सरकारी रकम लुटा कर लाभ पहुंचाने का बेहद गंभीर आरोप लग रहा है. भूपेश बघेल पर राज्य के नेताओं के साथ ही राष्ट्रीय स्तर के नेता और केन्द्रीय मंत्रियों ने आरोप लगाया है. यह मामला भिलाई स्थित चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण का है. फरवरी में जब सरकार ने इसकी घोषणा की थी तो जमकर वाहवाही की गई कि एक तरफ जहां दूसरी सरकारें निजीकरण को बढ़ावा दे रही हैं, वहीं भूपेश बघेल सरकार निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर रही है. लेकिन अब भाजपा नेताओं ने सवाल उठाना शुरू कर दिया है.
सरकार के इस फैसले का सबसे पहले विरोध करने वाला शख्स भी कांग्रेस से ही जुड़ा है. पूर्व सांसद चंदूलाल चंद्राकर यानी जिनके नाम पर यह कॉलेज और अस्पताल खोले गए, उनके ही पोते अमित चंद्राकर ने भी आपत्ति जताई है और इसमें बड़े घोटाले का आरोप भी लगाया है. अमित खुद कांग्रेस नेता हैं. अमित ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है. हमने अमित से समझने की कोशिश की है कि आखिर क्यों ये अधिग्रहण सरकार की ईमानदारी पर 'ग्रहण' लगा रहा है? अमित चंद्राकर कहते हैं कि वे एक कांग्रेस कार्यकर्ता हैं और अपने ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा उन्हें राहुल गांधी से मिली है, जिन्होंने अपनी ही सरकार के विधेयक को फाड़ दिया था.
लीज की जमीन को बैंक में बंधक कैसे रखा जा सकता है?
अमित चंद्राकर का कहना है कि नेहरू नगर में लीज पर मिली जमीन पर चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल संचालित है. इसी के संचालन समिति द्वारा 2013 में चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल को कचंदुर भिलाई में स्थापित किया गया. इसको चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल हॉस्पिटल प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी में रखा गया और उसको सेक्शन 25 कंपनी में परिवर्तित कर दिया गया. इसका भी नाम (CCMH) कर दिया गया.
कचंदुर स्थित मेडिकल कॉलेज का मूल्यांकन लगभग 20- 22 करोड़ का है लेकिन प्रमोटर्स ने बड़ी चालाकी से नेहरू नगर स्थित कॉर्पोरेट हॉस्पिटल को भी शामिल कर CCMH नाम से DPR बनाई और बैंक से लगभग 172 करोड़ का लोन ले लिया. इस तरह देखा जाए तो यह लोन मुख्य रूप से नेहरू नगर स्थित अस्पताल के दम पर मिला है न कि कचांदुर स्थित मेडिकल कॉलेज के दम पर. अमित कहते हैं कि चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल एक सरकारी जमीन पर बना है, उसे लीज पर दिया गया है, जिसके शर्तों में शामिल है कि इस जमीन को न तो बेचा जा सकता है और न ही इसे बैंक द्वारा बंधक बनाया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि बैंक ने कैसे इस प्रॉपर्टी के बदले लोन जारी कर दिया और बंधक का चस्पा कैसे लगा दिया जाता है? उनका कहना है कि इस मामले में इंडियन बैंक से कैसे लोन हुआ, ये भी जांच का विषय है. इसे एक बैंक घोटाला भी कहा जा सकता है.
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