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HERO: चाचा के बाद पिता भी हो गए संक्रमित, 3 घंटे ही मिलता है सोने का समय, बचा रहे जिंदगी

दुर्ग जिला अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर चंद्रमौलि यादव ने अबतक 500 से ज्यादा कोरोना संक्रमितों की जान बचाई है. चाचा और पिता के कोविड पॉजिटिव होने के बावजूद उसका मनोबल नहीं गिरा, दोनों का ध्यान रखने के साथ-साथ मरीजों के इलाज में वे दिन रात लगे हुए हैं.

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Published : May 10, 2021, 8:50 PM IST

Updated : May 11, 2021, 1:30 PM IST

Dr Chandramouli Yadav
कोविड के हीरो

दुर्ग:डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा यूं ही नहीं दिया गया है. कोरोना काल में डॉक्टर्स ने जो सेवा कर रहे हैं, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. कोरोना की रोकथाम और संक्रमितों के उपचार के लिए वे दिन रात एक किए हुए हैं. परिवार से दूर रहना, भरी गर्मी में पीपीई कीट में ड्यूटी करना. खुद को संक्रमण से बचाना और कोरोना से जीतने के इरादे से लड़ना. यही हर डॉक्टर की कहानी है, हम आपको एक ऐसे डॉक्टर से मिलवा रहे हैं, जिन्होंने अब तक 500 से अधिक कोरोना संक्रमितों की जान बचाई है. चाचा और पिता के पॉजिटिव आने के बावजूद उसका मनोबल नहीं गिरा. दोनों का ध्यान रखने के साथ-साथ मरीजों के इलाज में भी दिन रात लगे हुए हैं. हम बात कर रहे हैं दुर्ग जिला अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर चंद्रमौलि यादव की जो बिना छुट्टी लिए लगातार कोरोना मरीजों की देखभाल में लगे हुए हैं. डॉक्टर यादव ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है.

कोविड काल के हीरो

सेकंड स्ट्रेन तीन दिन में फेफड़े को कर रहा संक्रमित

जिला अस्पताल में कोरोना संक्रमितों का उपचार कर रहे डॉ. चंद्रमौलि यादव ने ईटीवी भारत को बताया कि पहले स्ट्रेन के दौरान लोगों में भय था. इसके साथ ही लोगों में सतर्कता भी थी. जिसकी वजह से लोग घरों से बाहर भी नहीं निकलते थे. लेकिन दूसरे स्ट्रेन के दौरान लोगों ने लापरवाही बरतना शुरू कर दिया. इस लहर में कोरोना 3 दिन में ही फेफड़े को संक्रमित कर दे रहा है. ऐसा होने से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. बहुत से लोग जब संक्रमण बढ़ जाता है और सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, उसके बाद अस्पताल आ रहे हैं. कुछ लोग तो ऐसे भी कंडीशन में आये हैं कि ऑक्सीजन लगाते ही उनकी जान चली जाती है.

'21 साल की युवती को नहीं बचा पाया, इस बात का अफसोस है'

डॉक्टर यादव ने कहा कि एक डॉक्टर होने के नाते हमारा यह फर्ज है कि इंसान की जान बचाएं. चाहे वो छोटा, बड़ा, अमीर या गरीब हो. हमारे लिए सबकी जान की कीमत बराबर होती है. हमारी कोशिश यही होती है कि हर एक इंसान की जान बचाई जाए. हाल ही में हमारे यहां आईसीयू में एक युवती एडमिट थी. 20 दिनों तक लगातार उसका इलाज चलता रहा. हमारी पूरी टीम उसे बचाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी. एक महीने पहले से वह संक्रमित हुई थी. उसके फेफड़े में संक्रमण पूरी तरह फैल चुका था. 20 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद भी हम उस युवती को नहीं बचा पाएं. इस बात का मुझे बहुत ज्यादा अफसोस है, क्योंकि उसकी उम्र महज 20-21 साल ही थी.

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चाचा के बाद पिता भी हुए संक्रमित

चंद्रमौलि कहते हैं, "मेरे घर की जिम्मेदारी मुझ पर ही है. माता-पिता काफी बुजुर्ग हो चुके हैं. ऐसे में घर पर किसी भी चीज की आवश्यकता होती है तो वे नहीं जा पाते. हमें डर रहता है, हमारी वजह से कहीं वे संक्रमित न हो जाएं. लेकिन मेरी तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोना ने मेरे घर पर भी पैर पसार लिया. चाचा जी संक्रमित हो गए. उन्हें दुर्ग जिला अस्पताल में भर्ती किया, जहां अन्य मरीजों के साथ ही मुझे अपने चाचा का भी उपचार करना पड़ा. कुछ दिन पहले ही चाचा ठीक हुए हैं. लेकिन चाचा के ठीक होने के बाद मेरे पिता संक्रमित हो गए. वर्तमान में उनका उपचार रायपुर के एक निजी अस्पताल में चल रहा है. घर में अकेला होने की वजह से अपने दायित्वों के साथ ही मुझे घर पर भी ध्यान देना होता है. ऐसे में हमें दोनों को मैनेज करना पड़ता है."

जवाबदारी ऐसी कि 2 से 3 घंटे ही सो पाया: डॉक्टर

डॉ. यादव बताते हैं कि हम भले ही डॉक्टर हैं, लेकिन घर के लोग घर के ही होते हैं. उनके साथ हमारी स्वयं की भावनाएं जुड़ी होती हैं. बाकियों के साथ भी रहती है, लेकिन घर वालों के साथ एक अलग ही आत्मीयता होती है. जिसकी वजह से मन में डर आ जाता है. मुझे याद है कि पिता जी जब संक्रमित हुए तब मैं 6 दिनों तक 2 से 3 घंटे ही सो पाता था. क्योंकि ड्यूटी के बाद पिता का भी ध्यान रखना जरूरी था. परिवार के तमाम लोग भी पिता को लेकर चिंतित रहते, बार-बार फोन आता. उन सबको मैनेज करना, फिर रात में 12 घंटे की ड्यूटी करना मुश्किल काम था. यह समय मेरे लिए काफी कठिन रहा.

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गार्ड के माध्यम से पहुंचाते हैं सब्जियां

डॉ. चंद्रमौलि यादव के मुताबिक वह ड्यूटी करने के बाद अपने रूम पहुंचते हैं, क्योंकि घर जा नहीं सकते. दुर्ग में वह अपनी फैमिली के साथ किराए के मकान में रहते हैं. हालांकि घर का जरूरी सामान राशन या सब्जियां खरीदकर गार्ड के माध्यम से घर पहुंचाते हैं. उसके बाद पिता जी के लिए दवाइयों की कमी या कोई अन्य समस्याओं का समाधान कर वापस अपनी ड्यूटी पर चले जाते हैं.

डरने की जरूरत नहीं, लक्षण दिखाई देने पर तत्काल कराए जांच: डॉक्टर

डॉ. यादव ने नए स्ट्रेन को लेकर लोगों से अपील करते हुए कहा कि डरने की जरूरत नहीं है. लक्षण दिखाई देने पर तुरंत टेस्ट कराएं. सही समय में इलाज हो जाए तो जान बचाई जा सकती है. क्योंकि कोरोना से मौत उन्ही की हो रही है जो गंभीर हालात में अस्पताल पहुंच रहे हैं. वैसे भी अब हमारे यहां मृत्यु दर में गिरावट हुई है. बहुत से लोग अस्पताल से डिस्चार्ज भी हो रहे हैं. मरीजों को स्वस्थ होकर लौटता देख हमें भी खुशी होती है.

Last Updated : May 11, 2021, 1:30 PM IST

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