Cow Dung Idols : दुर्ग में गोबर की मूर्तियां बनाकर महिलाएं बन रही सशक्त, सी मार्ट के माध्यम से मिल रहा बाजार
Cow Dung Idols : छत्तीसगढ़ सरकार ने ग्रामीण स्तर पर लोगों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराए हैं. आज महिलाएं गौठानों के माध्यम से कमाई में किसी से पीछे नहीं है. दुर्ग जिले की महिला स्वसहायता समूह ने गोबर से मूर्तियां बनाकर नया नवाचार शुरु किया है. जिससे कई महिलाओं को मदद मिली है. cow dung idols in C mart
गोबर की मूर्तियां बनाकर महिलाएं बन रही सशक्त
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Published : Aug 21, 2023, 3:29 PM IST
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Updated : Aug 21, 2023, 9:37 PM IST
गोबर की मूर्तियां बनाकर महिलाएं बन रही सशक्त
दुर्ग : छत्तीसगढ़ की सरकार ने नरवा गरवा घुरवा बाड़ी के अंतर्गत गांवों में रहने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का दावा किया है. गौठानों के माध्यम से महिला स्वावलंबी बन रही है. साथ ही साथ कई तरह के नवाचार करके अपनी आजीविका बढ़ा रही है.इन दिनों दुर्ग में महिला स्वसहायता समूह ने एक कदम और बढ़ाते हुए गोबर से इको फ्रेंडली मूर्ति बनाने का काम शुरु किया है.
गोबर से मूर्तियां बनाकर आजीविका चला रहीं महिलाएं : दुर्ग के सिरसाखुर्द की महिलाओं ने ये साबित किया है कि इच्छाशक्ति से हर लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है. बजरंग स्व सहायता समूह की महिलाएं गोबर से पारंपरागत चीजे जैसे दीये, बर्तन और चप्पलें बनाकर आजीविका चला रही थी.लेकिन महिलाओं को इससे उतनी आमदनी नहीं हो रही थी, जितनी होनी चाहिए. लिहाजा महिलाओं ने गोबर के जरिए दूसरी चीजें बनाने का काम सीखा. महिलाएं इसके लिए महाराष्ट्र गईं और गोबर से मूर्ति बनाने का काम सीखा. इसके बाद वापस आकर दुर्ग में गोबर से मूर्तियां बनानी शुरु की. जिनकी मांग बाजार में अब काफी बढ़ चुकी है.
महिला समूह से जुड़ी हेमलता सार्वे और मैना सार्वे ने बताया कि शुरू में उन्हें मूर्ति बनाने को लेकर संशय था. लेकिन जब वो काम सीखकर वापस आई तो दिक्कत नहीं हुई.
'' समूह की महिलाएं रोजाना 4 से 5 मूर्ति बनाती है. मूर्तियां बाजार में अच्छी कीमत में बिक रही है. मूर्ति के साथ-साथ समूह की महिलाएं गोबर से दीये समेत अन्य घर में लगने वाले शो पीस बना रही है.'' हेमलता सार्वे, सदस्य,बजरंग महिला स्वसहायता समूह
आसान नहीं है गोबर की मूर्तियां बनाना :गोबर की इन मूर्तियों को बनाने की विधि थोड़ी जटिल है. इसके लिए इन महिलाओ को काफी मेहनत करनी पड़ती है. सबसे पहले गोबर के कंडे बनाए जाते है. फिर उसे सुखाकर चक्की में पीसकर पाउडर बनाया जाता है. इसके बाद पाउडर में ग्वारगम और मुल्तानी मिट्टी का मिश्रण कर पानी में गूथा जाता है. गूथे हुई मिश्रण को मूर्तियों के सांचे में डालते हैं. 15 दिन तक ये मिश्रण सांचों में ही रहता है. इसके बाद इन्हें बाहर निकालकर रंगाई की जाती है. इसके बाद मूर्तियों को बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है.
जिला पंचायत के सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि इन महिलाओं की मूर्तियों को सी मार्ट के माध्यम से बेचा जा रहा है.जिसका प्रबंधन जिला पंचायत कर रहा है.
''छत्तीसगढ़ शासन की महत्वकांक्षी योजना नरवा गरवा घुरवा बाड़ी में अब एक नवाचार दिखाई दे रहा है. समूह की महिलाओं के द्धारा बनाई जा रही मूर्तियां काफी आकर्षक हैं. प्रत्येक मूर्तियों की कीमत 5 सौ रूपये तक देकर महिलाओं को भी सशक्त किया जा रहा है. यह मूर्तियां इकोफ्रेंडली है. इसका प्रकृति पर भी कोई दुष्परिणाम नहीं होगा. फिलहाल यह फर्स्ट लेवल का वैल्यू एडिशन है.आने वाले समय में इसको अपग्रेड कर इसे कॉमर्शियल उपयोग के लिए भी किए जाने का लक्ष्य रखा गया है.'' - अश्विनी देवांगन, जिला पंचायत सीईओ
छत्तीसगढ़ सरकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया है. आज ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाएं पैरों पर खड़ी है. सरकार के साथ-साथ महिला स्व सहायता समूहों को जिला प्रशासन की मदद से नवाचार के लिए तैयार किया जा रहा है.