दुर्गःछत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की कला और संस्कृति (Art and Culture) अपने आप में अद्भुत है. कहते हैं कि ये कला अपने अंदर कई रहस्य (Mystery) को समेटे हुए है. वहीं, बस्तरिया कारीगरी (Bastariya Workmanship) की धूम न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि देश-विदेशों में भी है. यही कारण है कि इस कला को सीखने के लिए युवा वर्गों (Youth) में धूम मची हुई है. गांव ही नहीं बल्कि शहरों से भी कॉलेज में पढ़ रहे छात्र-छात्रा इस कला की ओर केन्द्रित हो रहे हैं.
प्राकृतिक सुंदरता से हर-भरा इलाका बस्तर है, जहा की संस्कृति अब युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. दरअसल, बस्तरिया कला अब केवल बस्तर तक सीमित नहीं है. अब ये आर्ट बनाने और सीखने में शहरी युवा भी पीछे नहीं है. दुर्ग के साइंस कॉलेज (Science College) में दुर्लभ व विलुप्त प्राय बस्तर आर्ट (Bastar Art) को संजीवनी देने बस्तर के प्रसिद्ध और विशेष कारीगरों ने 10 दिवसीय कार्यशाला (10 day workshop) का आयोजन किया है.
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4 प्रशिक्षिकों द्वारा नि:शुल्क प्रशिक्षण
बताया जा रहा है कि कार्यशाला में झिटकू मिटकी वन हस्तकला समिति शिल्प ग्राम कोंडागांव से 4 प्रशिक्षिकों के द्वारा अलग-अलग समय मे 100 से 150 छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है. दरअसल, ढोकरा शिल्प कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य दुर्लभ व विलुप्त आदिवासी कला को संरक्षण व संवर्धन करने के साथ ही इस कला को आम लोगों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बनाना है. यही कारण है कि इस कला के ओर युवाओं का रुझान इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का प्रयास साबित हो सकता है.