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दुर्ग में एक परिवार चार पीढ़ियों से बना रहा रावण का पुतला

पांच दशक पहले गांव की रामलीला मंडली में वो रावण का किरदार निभाते थे. रामलीला में दशानन के किरदार में इतना रम गए कि रावण का पुतला बनाना सीख लिया. देखिए कैसे एक गांव रावण के पुतले बनाने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है.

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Published : Oct 14, 2021, 7:14 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 7:46 PM IST

effigy of ravana
रावण का पुतला

दुर्ग: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा कई मायनों खास पर्व माना जाता है. जिसमें भगवान श्रीराम का नाम लेकर लोग पुण्य कमाते हैं. लेकिन दुर्ग जिले के कुथरेल गांव में लोग रावण की वजह से लाखों की कमाई कर लेते है. रावण की वजह से गांव के कई लोग लाखों रुपये कमा रहे हैं. दुर्ग जिले का कुथरेल गांव महज साढ़े चार हजार की आबादी वाले गांव में अब चौथी पीढ़ी रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले बना रही है. जमीन पर पड़े ये विशालकाय मुखोटे दशानन रावण के हैं, जो अब अंतिम तैयारी में है. इन्हें विभिन्न रंगों से रंगा जा रहा है ताकि ये आकर्षक दिख सके. ये रावण के पुतले दुर्ग जिले के छोटे से गांव कुथरेल में बन रहे हैं. जहां विगत 50 सालों से एक परिवार इसी तरह रावण के विशालकाय पुतले बनाकर अपनी पारिवारिक परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं.

दरअसल गांव में रावण के भीमकाय पुतले बनाने की शुरुआत गांव के ही बुजुर्ग बिसोहाराम साहू ने की थी. पेशे से वे बढ़ई थे लेकिन गांव की रामलीला मंडली में रावण का किरदार निभाते थे, अपने किरदार में इतने रम गए कि उन्होंने दशहरे के लिए रावण का पुतला बनाना सीखा धीरे-धीरे उनके बनाए पुतलों की मांग बढ़ती गई. तब उनके ही परिवार के लोमन सिंह साहू ने यह काम सीखा और आज इस परंपरा को स्व. लोमन सिंह के बेटे डॉ. जितेन्द्र साहू आगे बढ़ा रहे हैं.

रावण का पुतला

डॉ. जितेन्द्र ने बताया कि अब उनके परिवार के बच्चे भी रावण का पुतला बनाा सीख गए हैं. बिसोहाराम के बाद उनके बेटे लोमन सिंह ने भी कई वर्षो तक रामलीला में रावण का किरदार निभाया और गांव में उनकी पहचान ही रावण के नाम से हो गई. साहू परिवार की ओर से निर्मित रावण के पुतले दुर्ग के अलावा रायपुर, बिलासपुर, सहित करीब 10 जिलों में जाते हैं. अकेले उनके पास ही इस बार 25 समितियों ने रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले तैयार करने का ऑर्डर दिया हैं. लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से इस बार रावण का कद कम कर दिया गया है. जहां कभी 70 फिट के रावण के पुतले बनते थे, वहां केवल 50 फिट का पुतला बनाया जा रहा है.

वे भिलाई-दुर्ग सहित रायपुर के बीरगांव और आसपास के कई जिलों और गांवों की समितियों के लिए भी पुतले तैयार कर रहे हैं.इस पूरे काम मे साहू परिवार की महिलाएं भी साथ मे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती है सुखवंती बाई कागज के लेप से मुखोटा तैयार कर रही है तो हीरा बाई उसको सुखा रही है. इस काम मे घर की महिलाएं पुरुष कारीगरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है. एक पुतले की कीमत करीब 25 हजार रुपए तक होती है.

रावण का पुतला

रावण के शरीर को तैयार करने बांस, पुरानी बोरी पुट्टा और कागज का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन मुखौटा बनाने में बड़ा वक्त लगता है. इसके लिए पहले मिट्टी का एक खांचा तैयार किया जाता है. जिस पर कागज को सजाया और लगाया जाता है. उसके बाद अखबार के पन्ने को एक-एक लेयर कर उस पर बिछाया जाता है. करीबन 20 से 25 लेयर के बाद उसे सूखने छोड़ दिया जाता है. जब यह स्ट्रक्चर सूख जाता है. जब स्प्रे पेटिंग के जरिए इसे चेहरे का रूप दिया जाता है. यह चेहरा दशहरा के दिन ही लगाया जाता है. पूरे रावण के पुतले को बनाने में करीब 2 माह का समय लगता है. इन 60 दिनों में पूरी शिद्दत और राम भक्ति के साथ रावण के ये विशाल काय पुतले तैयार किए जाते है.

Last Updated : Oct 14, 2021, 7:46 PM IST

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