धमतरी: नवरात्र के नौ दिन देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी. नवमी के दिन भी माता मंदिरों में लोग अपनी मन्नतें लेकर पहुंचे. छत्तीसगढ़ को देवी मंदिरों के लिए जाना जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है मां विंध्यवासिनी का. इसे बिलाईमाता के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. लोग कहते हैं कि जो यहां आता है, खाली हाथ नहीं जाता है.
धमतरी में स्थित बिलाईमाता मंदिर में पिछले पांच सौ वर्षों से आस्था की ज्योत प्रज्जवलित होती आ रही है. इस ज्योत को देखने दूर-दूर से लोग आते है. श्रध्दालुओं का कहना है कि माता के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.
बीहड़ में वास करती थी मां विंध्यवासिनी
भक्तों का मानना है कि मां विंध्यवासिनी, अंगारमोती, रिसाई माता और दंतेश्वरी माता की बड़ी बहन हैं. जो सदियों से गंगरेल की बीहड़ जंगलों में वास कर रही हैं. तकरीबन 500 साल पहले माता ने पाषाण रुप में प्रकट होकर लोगों को दर्शन दिया था. तब से ही माता की पूजा इस जगह पर की जाती है.
मान्यता है कि जब कांकेर के राजा नरहरदेव शिकार के लिऐ जा रहे थे, उस वक्त उन्हें जंगल में माता के दर्शन हुए थे. तब से लेकर आज तक इस शक्ति स्थल पर भक्ति की धारा अनवरत बह रही है.
धमतरी की हैं इष्टदेवी
इस मंदिर की घंटियों की गूंज सुनकर ही शहर के लोगों के दिन की शुरुआत होती है. माता बिलाईदेवी शहर की इष्टदेवी हैं. बताया जाता है कि जब माता ने सबसे पहले दर्शन दिए तब उनके पाषाण रुप के दोनों तरफ काली बिल्लियों का डेरा था, जो मन्दिर बनने के बाद गायब हो गईं. शायद इसीलिए इन्हें बिलाईमाता के नाम से भी जाना जाता है.