धमतरी: छत्तीसगढ़ लोक गीतों का कुबेर है और ये मेहनतकश इंसानों की धरती है. यहां न जंगल जमीन की कमी है न डोली डांगर की. हरे-भरे खेत-खार, जंगल-पहाड़, धन-धान्य से भरे कोठार जैसे इस धरती के श्रृंगार हैं. वहीं इस रत्नगर्भा धरती की कला और संस्कृति भी ठीक इन्द्र-धनुष की तरह बहुरंगी है. यहां लोक गीतों का अक्षय भंडार है. इन्हीं परंपराओं में से एक परंपरा ये भी है कि खेतों में काम करते वक्त ग्रामीण महिलाएं करमा, ददरिया सहित सुआ गीत गुनगुनाती हैं. इसके पीछे मनोरंजन होता ही है साथ ही आसानी से दिन कट जाता है और काम का काम हो जाता है.
सहयोग के बदले नहीं लेते कोई मूल्य
जिले के वनांचल इलाके में आज भी किसान एक दूसरे के धान कटाई के लिए सहयोग किया करते हैं. इससे नकद का लेन-देन नहीं होता और इससे किसानों के पैसे भी बचते हैं. इसके अलावा यहां खेतों में लोग आज भी ददरिया सहित अन्य लोकगीतों का गान करते हैं. महिला मजदूर बताती हैं कि काम को मनोरंजक बनाने के लिए काम करते समय इस गीत को गाती हैं, जिससे काम की थकान भी मिट जाता है. शायद यही वजह है कि आज भी यह परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में बदस्तूर जारी है. आज भी खेतों में काम करते ग्रामीणों से यह गीत सुना जा सकता है.