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धमतरी के अंगारमोती मंदिर में मड़ई मेला, संतान प्राप्ति के लिए अनोखी प्रथा - अंगारमोती मंदिर की मान्यता

angarmoti temple dhamtari गंगरेल स्थित अंगारमोती मंदिर में हर साल दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को मड़ई मेला लगता है. मान्यता है कि इस दिन निसंतान महिला अगर यहां पुजारी के पैरो से रौंदी जाए. तो उसे संतान की प्राप्ति होती है. हर साल इस मेले में सैकड़ों निसंतान महिलाएं संतान सुख की कामना लेकर आती है. इस अनोखे मेले को देखने हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.Recognition of Angarmoti Temple

Recognition of Angarmoti Temple
गंगरेल स्थित अंगारमोती मंदिर

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Published : Oct 28, 2022, 11:08 PM IST

Updated : Oct 29, 2022, 10:55 PM IST

धमतरी:छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में मां अंगार मोती के दरबार में मड़ई मेले में हर साल की तरह इस साल भी सैकड़ों महिलाएं पहुंची. सूनी गोद भरने की कामना लिए महिलाएं नारियल अगरबत्ती के साथ बाल खोले घंटों मां का इंतजार करती रही. घंटों इंतजार के बाद महिलाएं जमीन पर लेटी जिसके बाद बैगा उनकी पीठ पर चले. मान्यता है कि संतानहीन महिलओं के ऊपर बैग के चलने से उन्हें संतान की प्राप्ति होती है.

गंगरेल स्थित अंगारमोती मंदिर

गंगरेल स्थित अंगारमोती मंदिर जहां हर साल दीवाली के बाद पहली शुक्रवार को मेला लगता है. मान्यता है कि इस दिन निसंतान महिला अगर यहां पुजारी के पैरो से रौंदी जाए. तो उसे संतान की प्राप्ति होती है. हर साल इस मेले में सैकड़ों निसंतान महिलाएं संतान सुख की कामना लेकर आती है. इस अनोखे मेले को देखने हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.

संतान की कामना के लिए 300 से ज्यादा महिलाएं हाथ में नारियल, नींबू, फूल पकड़कर मां अंगार मोती के दरबार के सामने जमीन पर लेटीं. सुहागिनों के ऊपर शुक्रवार शाम चलकर मंदिर के मुख्य पुजारी ईश्वर नेताम ने उन्हें आशीर्वाद दिया. जमीन पर लेटने वाली सुहागिनों की भीड़ इतनी ज्यादा रही कि मां अंगार मोती के दरबार से लेकर मंदिर के प्रवेश द्वार तक करीब 400 मीटर तक का रास्ता उनसे भर गया. वैसे हैरानी इस बात की है कि इस परंपरा को मानने वालों में पढ़ी-लिखी महिलाएं भी शामिल हैं.

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क्या है मान्यता: पुरानी मान्यता है कि निसंतान महिलाओं को मां अंगारमोती का आशीर्वाद मिल जाए, तो उसके आंगन में भी किलकारियां जरूर गूंजती है. लेकिन इस आशीर्वाद के लिये उस प्रथा का पालन भी करना होता है, जो यहां प्रचलित है. इसके लिये निसंतान महिलाएं सुबह से ही मंदिर में आ जाती हैं. इन्हें अपने बाल खुले रखने होते हैं. निराहार रहना होता है. हाथ में एक नारियल लेकर ये महिलाएं इंतजार करती रहती हैं. जब पूजा पाठ करने के बाद मुख्य पुजारी मंदिर की तरफ आता है. इस वक्त कहा जाता है कि बैगा पर मां अंगारमोती सवार रहती है. जैसे ही बैगा मंदिर की तरफ बढ़ता है. सभी महिलाएं रास्ते में औंधे लेट जाती है. बैगा इन महिलाओं के उपर से चलता हुआ मंदिर तक जाता है. कहते हैं कि जिन महिलाओं के उपर बैगा का पैर पड़ता है. उसकी गोद जरूर हरी होती है. ये तमाम महिलाएं बैगा के पैर के नीचे आने के लिये ऐसा करती हैं.

जन आस्था के सामने सारे नियम कायदे कमजोर: मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हुए बुजुर्ग बताते है कि "ये मान्यता कई बार प्रमाणित हो चुकी है. यही कारण है कि साल दर साल इस मेले में निसंतान महिलाओं की भीड़ भी बढ़ती जा रही है. अंगारोती मंदिर की इस प्रथा को राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग ने बरसों पहले बंद करवाने की कोशिश की थी. लेकिन जन आस्था के सामने सारे नियम कायदे कमजोर पड़ गए. प्रथा बंद तो हुई नहीं, उल्टे यहां महिलाओं की भीड़ बढ़ती जा रही है.

Last Updated : Oct 29, 2022, 10:55 PM IST

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