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SPECIAL : धमतरी के लोकेश चीन में योग सिखाकर कमा रहे लाखों - लोकेश ध्रुव योगा टीचर चीन में

धमतरी के रहने वाले लोकेश 4 साल से चीन में रहकर लोगों को योग सिखा रहे हैं और फिलहाल वो अभी अपने घर आए हुए हैं.

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लोकेश ध्रुव अपने परिवार के साथ

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Published : Jan 17, 2020, 10:40 PM IST

धमतरी : कहते हैं कि राजा का सम्मान सिर्फ उसके देश की प्रजा करती है, लेकिन ज्ञानी का सम्मान देशकाल, जात और धर्म की सीमाओं से परे होता है. ज्ञानी जहां खड़ा हो जाए वहीं उसका सम्मान होता है. इसकी मिसाल है धमतरी का लोकेश ध्रुव जिसका जन्म जिले के मगरलोड ब्लॉक के छोटे से गांव परसागुड़ा के आदिवासी किसान परिवार में हुआ और यहीं प्राथमिक शिक्षा पाने वाला लोकेश आज चीन जैसे देश में न सिर्फ यश कमा रहा है, बल्कि धन भी कमा रहा है, वो भी योग विद्या के दम पर.

लोकेश को योगा से चीन में मिली पहचान

4 साल से चीन में रह रहा है लोकेश
लोकेश चीन में करीब 4 साल से रह रहा है और अब तक वहां हजारों लोगों को योग सिखा चुका है. लोकेश ने बीते साल ही चीनी मूल की लड़की हाउझांग से शादी कर अपना घर बसाया है और फिलहाल वो अपनी पत्नी, सास, ससुर के साथ अपने गृह ग्राम परसागुड़ा आया हुआ है.

'हमेशा से आध्यात्म में रही रुचि'
लोकेश ने बताया कि बचपन से ही उसका ध्यान योग और अध्यात्म में लगता था. साल 2007-08 में उसने हरिद्वार से योग में एमए की डिग्री हासिल की. इसके बाद कुछ साल वो दिल्ली में योग शिक्षक के तौर पर काम करता रहा. फिर चीन से जॉब ऑफर मिलने के बाद वो वहां चला गया. लोकेश अभी चीन की राजधानी बीजिंग में भारतीय योग संस्था ओम शिव योगा के लिए काम कर रहा है, जहां हर महीने उसे सवा लाख रुपए सैलरी मिलती है. लोकेश ने बीजिंग में अपना मकान भी खरीद लिया है.

चीनी लोगों को कराते हैं राम भजन
लोकेश चीन में जाकर भी अपनी संस्कृति नहीं भूले हैं, बल्कि चीनियों को भी वो रोज राम भजन करवाते हैं. लोकेश का मानना है कि योग को लेकर फिलहाल जो वैश्विक माहौल है. इससे पूरी दुनिया में योग के क्षेत्र में बेहतरीन कैरियर के दरवाजे खुले हैं.

किसान पिता ने जताई खुशी
लोकेश अपनी पत्नी और उसके परिवार को लेकर अपने गांव आया हुआ है, जहां चीनी लोग भारतीय गांव समाज और संस्कृति का आनंद ले रहे हैं. समस्या सिर्फ भाषा और भोजन को लेकर रहती है. लोकेश के किसान पिता ने अपने अनुभव बताए और कहा कि, वो भी चीन जाकर बेटे के साथ रहे हैं, लेकिन उन्हें वहां का खाना पसंद नहीं आया और वो खुद ही खाना बनाकर खाते थे. इसके साथ ही लोकेश के पिता ने बताया कि, 'बातचीत करने में भी परेशानी होती है क्योंकि चीनी लोग हमारी भाषा नहीं समझते और हम उनकी भाषा नहीं समझते.'

लोकेश शायद अपनी बाकी की जिंदगी चीन में ही बिताएं, लेकिन भारत की इस प्राचीन विद्या और कला के जरिए वो छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे भारत का नाम रौशन करते रहेंगे.

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