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धमतरी: बॉर्डर पर होने की सजा भुगत रहे हैं यहां के लोग, नमक के लिए जाना पड़ता है दूसरे गांव - कलेक्टर

आजादी के बाद से कई सरकार आई और गई लेकिन जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव आज भी विकास से कोसों दूर है. भावों से जूझते इन गांवों के नाम भर्रीपारा और कोरमुड हैं.

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Published : Jun 14, 2019, 9:50 PM IST

धमतरी: जिले के अंतिम छोर पर बसे गांव आज भी विकास से कोसों दूर है. विकास किसे कहते हैं यहां रहने वाले लोगों को पता ही नहीं. गांवों में समस्या नहीं समस्याओं का अंबार है. आजादी के बाद से कई सरकार आई और गई लेकिन इन गांवों की हालत जस के तस बनी रही. विकास के अभाव में यहां के लोग आज भी छोटी- छोटी चीजों के लिए दूसरे गांव पर निर्भर हैं.

बॉर्डर पर होने की सजा भुगत रहे हैं ग्रामीण

इन दो गांवों के लोगों को अपनी जरूरत का सामान लेने भी दूसरे गांव जाना पड़ता है. हाल इतना बुरा है कि यहां के कई ग्रामीण तो अपने ग्राम पंचायत से भी अनजान हैं. अभावों से जूझते इन गांवों के नाम भर्रीपारा और कोरमुड हैं. खास बात ये है कि भर्रीपारा कांकेर तो कोरमुड धमतरी जिले में पड़ता है. दोनों ही गांव अपने हाल पर आंसू बहा रहे हैं.

गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी

  • बात कोरमुड गांव की, जो जयपुरी का आश्रित गांव है. ये गांव पहले भुरसीडोंगरी का आश्रित गांव हुआ करता था. उस समय लोगों को जरूरी काम के लिए नदी पार कर अपनी ग्राम पंचायत जाना पड़ता था.
  • जयपुरी गांव से जुड़ने के बाद अब लोगों को अपने ही पंचायत जाने के लिए 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है.
  • अगर इन गांवों को आवागमन की सुविधा से जोड़ दिया जाए तो ये भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं.
  • ये गांव बारिश के दिनों में टापू में तब्दील हो जाता है. यहां के स्कूल पूरी तरह जर्जर हो चुके हैं.
  • पढ़ाई करने के लिए बच्चें जंगलों के कच्चे रास्ते से होकर दूसरे गांव जाने को मजबूर हैं, जिससे मासूम बच्चों पर जंगली जानवरों का खतरा मंडराता रहता है.
  • रास्ता ठीक नहीं होने की वजह बच्चे जान जोखिम में डालकर एक गांव से दूसरे गांव जाने को मजबूर हैं. स्वास्थ्य सेवा भी बेहाल है.

ये है भर्रीपारा का हाल

  • दूसरी ओर कांकेर जिले का भर्रीपारा गांव भी कुछ ऐसे ही समस्या से जूझ रहा है. ये गांव कांकेर जिले में आता है लेकिन यहां के ग्रामीण भी तमाम कामों के लिए धमतरी पर आश्रित हैं.
  • ये दोनों ही गांव जिले के बॉर्डर पर बसे हैं. इस वजह से यहां न तो प्रशासन के अफसर पहुंचते हैं और न ही कोई जनप्रतिनिधि.
  • बॉर्डर होने के कारण शासन-प्रशासन भी इन गांव की अनदेखी कर रहा है लिहाजा इसकी सजा यहां के ग्रामीण भुगत रहे हैं.
  • इन गांवों में रोजगार की सुविधा नहीं होने के कारण यहां के ग्रामीण मछली मारकर अपनी अजीविका चलाने मजबूर हैं.

गांव में खोले जाएंगे बैंक और एटीएम
इस मामले में जब कांकेर सांसद मोहन मंडावी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि प्रशासन आने वाले समय में आवागन की सुविधा दुरुस्त करने पर काम करेगा. वहीं जो गांव टापू में तबदील हो चुके हैं, उसे भी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से जोड़ा जाएगा. इसके साथ ही गांव में बैंक और एटीएम खोलने की बात भी मंडावी ने कही है.

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