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SPECIAL: हाथियों की मौजूदगी ने धमतरी के दर्जनभर गांवों में करा दी अघोषित शराबबंदी ! - महुए की सुगंध से हाथी फैला रहे दहशत

हाथियों से क्षेत्र में दहशत है. लोग शाम को 7 बजे ही घर में घुस जाते हैं. कभी-कभी तो ऐसे हालात बन जाते हैं कि लोग छतों पर रहने को मजबूर हो जाते हैं. हाथियों से डरे गांव वालों ने महुए की शराब बनानी बंद कर दी है. इसके साथ गांव के आस-पास केला और नारियल के पेड़ों को भी नहीं रखा है.

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धमतरी में अघोषित शराबबंदी

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Published : Feb 12, 2021, 8:35 PM IST

धमतरी:हाथियों की मौजूदगी ने धमतरी के दर्जनभर गांवों में अघोषित शराबबंदी करा दी है. इन क्षेत्र में इन दिनों महुआ शराब बनाने के लिए न चूल्हों पर हंडी चढ़ रही है. ना ही महुआ मिल रहा है. दरअसल महुआ की गंध मिलते ही हाथी जंगल छोड़कर आबादी की ओर चले आते हैं. गांवों में धावा बोल देते हैं. हाथियों का दल घरों की कच्ची दीवारें तोड़ महुआ खा जाते हैं. जिससे गांव वाले दहशत में है. गांव वालों को परिवार और मकान बचाने के लिए महुआ शराब से तौबा करनी पड़ी है.

हाथियों ने गांव में कराई शराबबंदी !

हाथियों से गांव में अघोषित शराबबंदी

इन दिनों हाथियों के दो दल जिले के नगरी और धमतरी ब्लॉक में डेरा डाले हुए हैं. 27 हाथियों का पहला दल नगरी से 30 किलोमीटर दूर चारगांव, भैंसामुड़ा, मटियाबाहरा, कुदुरपानी और खरका गांव के जंगल में दो महीने से घूम रहा है. हाथियों का दूसरा दल धमतरी मुख्यालय से 12 किलीमीटर दूर तुमराबहार, विश्रामपुर, कसावाही और तुमाबुजुर्ग गांवों के निकट जंगल में हफ्ते भर से डटा हुआ है. 18 हाथियों वाले इस दल का नाम चंदा है. ये हाथी रात में गांवों में उत्पात मचा रहे हैं. तुमराबहार के उपसरपंच परमात्मा नागवंशी और अन्य ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में भी अघोषित शराबबंदी है.

धमतरी में हाथियों का दल

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नहीं बना पा रहे महुए की शराब

अत्यंत पिछड़ी जनजाति में शामिल कमार भी यहां रहते हैं. छत्तीसगढ़ के आबकारी कानून में कमारों को स्वयं के उपयोग के लिए सीमित मात्रा में शराब बनाने की इजाजत है. बावजूद इसके हाथियों की दहशत के कारण अब वे भी महुए की शराब नहीं बना रहे हैं.

हाथियों से ग्रामीण परेशान

हाथियों से लोगों में दहशत

हाथियों के झुंड फसलों को तो नुकसान पहुंचा रहे हैं. घरों को भी तोड़ रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि 7 बजते ही सभी अपने-अपने घरों में दुबक कर रहते हैं. हाथियों की चिंघाड़ से स्तब्ध रह जाते हैं. पक्के मकान वाले लोग घरों की छतों पर रात गुजारते हैं. ग्रामीण गांव के बाहर अंगीठी जलाकर रात भर पहरा देते हैं.

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