धमतरी: मन में जिज्ञासा कुछ कर जाने की ललक. मेहनत से मुंह न मोड़ना और मंजिल को छूने की जिद, इंसान को सब मुमकिन करा देती है. कुछ ऐसी ही कहानी है डाकेश की, जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से बिना पेट्रोल-डीजल से सड़कों पर दौड़ने वाली साइकिल बनाई है.
बिना पेट्रोल के चलती है इनकी मोटरसाइकिल इरादे मजबूत हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं
वो कहते हैं न इरादे मजबूत हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है, सब हासिल हो जाता है. बस मन में उसे कर जाने की जिद होनी चाहिए. ऐसा ही कमाल धमतरी के वनांचल इलाके में रहने वाले डाकेश ने कर दिखाया है. महज 12वीं पास इस युवक ने बैटरी और मोटर से चलने वाली मोटरसाइकिल बना आदिवासी अंचल में एक नई प्रेरणा दी है, युवाओं को एक सीख दी है. उसने इस खोज से वनांचल क्षेत्र का मान बढ़ाया है.
वनांचल इलाके के डाकेश का कमाल
दरअसल नगरी ब्लॉक के छिपली गांव में रहने वाले डाकेश साहू महज 12वीं पास हैं, जिनका लगाव मशीनों से है. कृषि विज्ञान की पढ़ाई की है. मुकम्मल सुविधा नहीं, कमजोर आर्थिक स्थिति, वनांचल इलाका, फिर भी लगन मजबूत. अपने इरादों के बल पर उसने अपने सपनों को पंख दे दिया.
हुनर से निकाला तरकीब फिर साइकिल में डाला जान
डाकेश ने अपने हुनर से साइकिल में जान डालने की तरकीब निकाली, उसने साइकिल में एक हजार वाट की मोटर लगायी, 2 बैटरियां लगायी, जिससे विद्युत सप्लाई की. फिर देखते ही देखते इसकी साइकिल बिना पेडल मारे 45 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से सड़क पर दौड़ने लगी. 6 जून को वह पहली बार नगर की सड़कों पर निकला तो, देखने वालों की भीड़ लग गई. चारों तरफ से वाहवाही, घर से शाबासी और खोज को बड़ा करने का जुनून ने मुश्किल को भी संभव बना दिया.
महज दो दिन में बनाई ये साइकिल
इस साइकिल को तैयार करने में महज 8 हजार रुपये लगे हैं, इससे ज्यादा हैरत की बात तो ये है कि डाकेश ने इसे मूर्त रूप देने में महज 2 दिन लगाया है. इसमें 1 हॉर्स पावर की मोटर बैटरी और कंट्रोल पैनल भी लगा है, जिससे इसे कंट्रोल किया जाता है. बेटे की इस खोज से पूरा परिवार खुश है और गौरान्वित महसूस कर रहा है. वहीं डाकेश भी आगे चलकर कृषि यंत्र बनाना चाहता है, जिससे किसानों का भला कर सकें.