धमतरी:कोरोना संक्रमण ने होली के रंग भी फीके कर दिए हैं. गुम होती परंपराएं जो त्योहारों का इंतजार करती थीं, कोरोना की वजह से वो भी पूरी नहीं हो रही हैं. यही हाल नगाड़ों का भी है. आज भले ही समारोह या किसी कार्यक्रम में डीजे और धुमाल की खास डिमांड रहती है. लेकिन होली जैसे पर्व में परंपरागत वाद्ययंत्र नगाड़ा न बजे तो फिर बात नहीं बनती. इस बार नगाड़ा बनाने वालों पर बड़ी मार पड़ी है. कोरोना संक्रमण की वजह से एक भी ग्राहक उन्हें नसीब नहीं हो रहे हैं. नगाड़ा बनाने वालों की होली कहीं फीकी न पड़ जाए.
होली पर नगाड़ों का व्यवसाय भी ठप धमतरी जिले के विनोद मोहबे का परिवार नगाड़ा बनाने का व्यवसाय कर रहा है. डिमांड पूरी करने के लिए ये फैमिली दिवाली के बाद ही नगाड़ा बनाने की तैयारी शुरू कर देती है. पुरखों की सिखाई कला को बचाने और इसे आगे बढ़ाने के लिए ये परिवार दिन-रात मेहनत कर नगाड़ा बनाता है. लेकिन नए इन्स्ट्रूमेंट और फिर कोरोना ने इनका हौसला तोड़ना शुरू कर दिया है.
ऐसे बनाया जाता है नगाड़ा
विनोद मोहबे बताते हैं कि एक नगाड़ा बनाने में कम से कम 1000 से 12 सौ रुपये तक का खर्च आता है. नगाड़ा मटका, और चमड़े को मिलाकर बनाया जाता है. पहले मटके का ऑर्डर दिया जाता है. उसके बाद चमड़े को चूना लगाकर सफाई की जाती है, जिससे वह नरम हो जाए. इसके बाद अलग-अलग टुकड़ों में काटकर मटके में फिट किया जाता है. मटके में फिक्स करने के लिए चमड़े को रस्सी के आकार में काटा जाता है. फिर उसे अलग अलग डिजाइन में गूंथा जाता है और इस तरह नगाड़ा बनाया जाता है.
पुश्तैनी धंधा को बचाने की कोशिश
धमतरी शहर में एकमात्र मोहबे परिवार ही सालों से अपने पूर्वजों के इस पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ा रहा है. वे कहते हैं कि इनके व्यवसाय पर भी आधुनिकता की मार पड़ी है. लेकिन पुश्तैनी धंधा है, इस वजह से वह इसे आगे बढ़ा रहे हैं. ETV से बात करते हुए विनोद मोहबे बताते है कि मटेरियल का दाम ज्यादा होने के कारण इस बार नगाड़े के रेट में भी वृद्धि हुई है लेकिन खरीदार अभी भी पुरानी दर पर ही खरीदना चाहते हैं. मीडियम साइज का एक नगाड़ा बनाने के लिए करीब 800 से 900 रुपये की लागत आती है. लेकिन उस हिसाब से दाम नहीं मिलता है. पिछले साल तक किसी तरह नगाड़े बनाने वालों का व्यवसाय चल भी रहा था. लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण की वजह से जारी गाइडलाइंस से नगाड़ों की बिक्री ना के बराबर है. जिससे इस बार लागत निकलना भी मुश्किल दिख रहा है.
तीन से चार लोग मिलकर एक दिन में 7 से 8 जोड़ी नगाड़ा तैयार कर लेते हैं. ये नगाड़ा धमतरी के अलावा कांकेर और अन्य जिलों में भी सप्लाई किया जाता है.
नगाड़े के प्रकार और उनकी कीमत
- बड़ा नगाड़ा 1500 रुपये जोड़ी
- मंझला 1200
- डग्गा नगाड़ा 800
- टिमकी 500
- पिटवा 400
- छोटी डुग्गी की कीमत 300
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बिना नगाड़े के धुन के होली अधूरी
भारतीय संस्कृति में होली के पर्व पर नगाड़े का विशेष महत्व है. नगाड़े की धुन पर फाग गीत के साथ होली की खुमारी बढ़ती है. नगाड़े की धुन पर लोग फाग गीत गाते हुए होली का आनंद लेते है. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में बिना नगाड़ा के ना तो होलिका दहन होता है और ना ही होली मनाई जाती है. गांवों में यह परंपरा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. लेकिन इस बार गांव की गलियों से लेकर शहर के चौक-चौराहों में नगाड़ों की आवाज सुनाई नहीं दे रही है. ना ही फाग सुनाई दे रहे हैं. इसका मुख्य कारण है कोरोना संक्रमण.
एक बार फिर कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा रहा है. कई जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है. इसके अलावा कई जिलों के कुछ इलाकों को कंटेनमेंट जोन बना दिया गया है. होली को लेकर गाइडलाइंस जारी की गई है. सार्वजनिक जगहों पर नगाड़ा बजाना प्रतिबंध है. ऐसे में इस बार नगाड़े का व्यवसाय करने वाले लोग खासे परेशान हैं.