धमतरी: देश में आजादी के कई प्रतीक हैं जो आजादी के आंदोलन से लेकर आजादी के वीरों के संघर्ष की कहानी बया करते हैं. इन निशानियों में भवन, मूर्तियों के अलावा धमतरी के भैंसामुड़ा गांव का एक बरगद का वृक्ष भी शामिल है. यह वृक्ष इसलिए खास है क्योंकि इसे 15 अगस्त 1947 को रोपा गया था. आज यह विशाल वृक्ष बन चुका है. बताया जाता है कि सारे गांव के लिए यह बरगद सिर्फ एक वृक्ष नहीं बल्कि उससे कही ज्यादा महत्व रखता है.
देश की आजादी का गवाह बरगद का पेड़ 75 साल का हुआ 'बरगद'
यह बरगद का वृक्ष जिस गांव में है वह छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है. वृक्ष भैसामुड़ा गांव में चौराहे पर लगा है. बरगद के आस-पास ही बाजार, पंचायत भवन, अस्पताल और स्कूल भी बने हुए हैं. गांव के लोग फुर्सत और आराम फरमाने के लिए इसी के पास जा कर बैठते हैं. इन सब के अलावा इस वृक्ष की खासियत कुछ अलग भी है. वह यह है कि इसे 75 साल पहले 15 अगस्त 1947 के दिन पौधे के रूप में रोपा गया था.
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अहम फैसले बरगद की छांव में
भैसामुड़ा के ग्रामीणों के मुताबिक, गांव वालों को उस वक्त जैसे ही देश के आजाद होने की सूचना मिली तो आजादी के प्रतीक के रूप में गांव के बुजुर्गों ने इसे रोपा. इसकी देख रेख अच्छे से होती रही. जिसके बाद आज इसकी शाखाएं आसमान छूने लगी हैं. जंगलों के बीच बसे इस गांव में पेड़ों की कमी नहीं है. यहां इस बरगद से भी पुराने कई पेड़ हैं, लेकिन ये बरगद सारे गांव के लिए पूजनीय और आदरणीय है क्योंकि यह आजादी की निशानी है. बरगद के वृक्ष के नीचे पंचायत, गांव में सामाजिक बैठके और सभी महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं.
75 साल पहले जिन लोगों ने इस पेड़ को लगाया था. आज वो इस दुनिया में नहीं हैं. हालांकि उन्होंने जो गुलामी का दर्द महसूस किया वह उनके बाद की पीढ़ियों ने महसूस नहीं किया, लेकिन अपने बुजुर्गों की दी हुई सीख को आज की पीढ़ी अपने संस्कारों में मिलाए हुए है. उस वक्त जिस भावना से बुजुर्गों ने ये पेड़ लगाया था. उसी भावना का गांव की युवा पीढ़ी सम्मान करती है.