धमतरी/कुरुद:आजादी के बाद से अब तक देवार समाज के लोगों को शासन से आशियाना तक नसीब नहीं हुआ. शिक्षा,रोजगार और सभ्यता की तो कल्पना तक नहीं की जा सकती. देवार समुदाय का सामाजिक परिदृश्य आज भी जैसा का वैसा बना हुआ है. शासन-प्रशासन के तमाम दावे खोखले नजर आते हैं.
बताया जाता है कि देवार जाति के लोग पहले स्थाई रूप से निवास करते थे और जंगल ही उनके जीविकोपार्जन के साधन होते थे. कालांतर में इस समुदाय का जीवन घुमंतू हो गया. देवार समुदाय कला में निपुण होने के कारण गोदना गोदने का भी काम करते हैं. द्वार-द्वार जाने के कारण इस समुदाय का नाम देवार पड़ा है. मौजूदा वक्त में इनके परंपरागत व्यवसाय में बदलाव हुआ है. अब महिलाएं गांव, गली, शहर, मोहल्ले में घूम -घूमकर कबाड़ इकट्ठा करती है और पुरुष वर्ग साइकिल और अन्य साधनों से घूम-घूम कर कबाड़ के सामान खरीदते है. अच्छी बात है कि इस समुदाय के बच्चे भी अब स्कूल जाने लगे हैं.
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