दंतेवाड़ा: नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कई तरह के प्रयास प्रशासन ने किए हैं, लेकिन इसमें उतनी सफलता नहीं मिल पाई, जिनती कि उम्मीद थी. अब एक बार फिर एक अनूठा प्रयास किया जा रहा है. एक नई पहल और नई सोच पुलिस लाइन में हर सुबह-शाम देखने को मिल रही है. नक्सलियों के खात्मे के लिए पुलिस जवानों को गोंडी भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है. इतना ही नहीं खुद एसपी अभिषेक पल्लव गोंडी भाषा सीख रहे हैं.
सरेंडर नक्सलियों के इस 'ज्ञान' से 'लाल आंतक' पर नकेल कसेंगे जवान उनका मानना है कि भावनाओं को समझना है, तो उनकी भाषा में घुसना पड़ेगा. बता दें कि नक्सलगढ़ में ग्रामीणों से भाषाई दूरी के चलते बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. नक्सलियों ने ग्रामीणों की भाषा को पहले सीखा और उनके बीच में जगह बनाई. यदि पुलिस जवान इस भाषा को सीख लिया, तो यह बड़ी जीत होगी. निश्चत रूप से गोली के वार से भाषा का वार बड़ा होगा.
समर्पित नक्सली पढ़ा रहे आईपीएस को गोंडी
ताज्जुब की बात, तो यह है कि एक आईपीएस को समर्पित नक्सली गोंडी भाषा की तालीम दे रहे हैं. यहां डीआरजी का जवान (समर्पित माओवादी) एसपी अभिषेक पल्लव के साथ जिला बल के जवानों को भी भाषा सीखा रहा है. पहले फेस में पुलिस लाइन के जवान और कुछ सीआरपीएफ को गोंडी का ज्ञान दिया जा रहा है. इसके बाद थाना पुलिस को भी गोंडी भाषा का पाठ पढऩा होगा.
20 हजार गोंडी भाषा की तैयार हो रही है डिक्सनरी
20 हजार शब्दों की गोंडी भाषा की डिक्सनरी को तैयार करने पर काम किया जा रहा है. इस कार्य में पढ़े-लिखे जवानों को लगाया गया है. गोंडी के शब्दों का संकलन समर्पित नक्सलियों द्वारा कराया जा रहा है. साथ ही उन जवानों का भी सहयोग लिया जा रहा है, जिनकी लोकल स्तर पर भर्ती हुई है. यह डिकशनरी हिंदी, गोंडी और अंग्रेजी में होगी.
एसपी की पहल को मनोचिकित्सा से जोड़कर देखा जा रहा
बता दें कि एसपी अभिषेक पल्लव आईपीएस से पहले मनोचिकित्सक भी रहे हैं. लोगों को रीड करना उनका पहला काम रहा है. साथ ही बीमारों को सही दिशा प्रदान करना उनका लक्ष्य है. आईपीएस बनने के बाद भी अभिषेक नक्सलियों के गलियारे में इलाज करते देखे गए. उन्हें सफलता तो मिली, लेकिन इच्छा के अनुरूप नहीं थी. अब यह नक्सलियों और ग्रामीणों का बिना दवा का उपचार तैयार किया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि भाषा से ही उनकी भावनाओं को खंगाला जा सकता है.
दिया जाएगा सर्टिफिकेट
एसपी ने बताया कि भाषा सीखने के बाद सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा. वाकई में ये भाषा बड़ी कठिन है. हालांकि भाषा कोई भी सीखने में दिक्कत तो आती ही है, लेकिन गोंडी कोई दस्बेजिक भाषा तो है नहीं कि आसानी बाजार में उससे जुडी किताबें मिल सकें, इसलिए इसे सीखना कठिन है. इसका पूरा कोर्स होगा. इसके बाद सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा. यह पाठशाला निरंतर चलेगी. जवानों के अलावा सरकारी संस्थाओं के लोग भी यहां आकर गोंडी सीख सकते हैं. गोंडी भाषा में ग्रामीणों से बात करने से उनको अपनापन सा लगाता है. इस भाषा से ग्रामीणों को सरलता से समझा और परखा जा सकता है.