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Special: इस खौफ से 14 साल से नदी के इस पार नहीं आते हैं ग्रामीण

कासौली पंचायत में मौजूद राहत शिविर में इंद्रावती नदी के उस पार से आए 186 परिवार रह रहे हैं, जो वापस नहीं जा सकते. साल 2009 में सरकार ने सलवा जुड़ुम पीड़ितों के रोजगार के लिए बांस प्रसंस्करण केंद्र खोला ताकि रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं.

इस खौफ से 14 साल से नदी के इस पार नहीं आते हैं ग्रामीण

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Published : Jun 11, 2019, 4:28 PM IST

दंतेवाड़ा: 5 जून 2005 को बस्तर में जो आग लगी थी, उसके अंगारे 14 साल बाद भी सुलग रहे हैं. हम सलवा जुड़ूम की बात कर रहे हैं. इस दौरान 53 हजार लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था और तभी से ये लोग राहत शिविर में रहने को मजबूर हैं. शिविर में इनका जख्म हर रोज गहरा होता है और हर रोज इनका दर्द बढ़ता जाता है.

इस खौफ से 14 साल से नदी के इस पार नहीं आते हैं ग्रामीण

कासौली पंचायत में मौजूद राहत शिविर में इंद्रावती नदी के उस पार से आए 186 परिवार रह रहे हैं, जो वापस नहीं जा सकते. साल 2009 में सरकार ने सलवा जुड़ुम पीड़ितों के रोजगार के लिए बांस प्रसंस्करण केंद्र खोला ताकि रोजगार के अवसर पैदा किए जाएं.

56 लाख से अधिक की लागत से तैयार इस केंद्र में बांस के फर्नीचर तैयार किए जाते थे. इससे राहत शिविर में रहने वाले लोगों को रोजगार का अवसर मिला था. लेकिन अब यह बंद हो चुका है. दो साल पहले वन विभाग ने इसे बंद कर लोगों की रोजी रोटी छीन ली. लोगों ने नेताओं से लेकर अधिकारियों तक से गुहार लगाई, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. एक महिला पायके बाई ये दर्द बताते-बताते कहती हैं छोड़ो, उसकी बात क्या करना और फिर टोरा तोड़ने में मशगूल हो जाती हैं.

बांस प्रसंस्करण के केंद्र के साथ-साथ सरकार ने 14 साल पहले लोगों के रहने के लिए झोपड़ियां बनवाई थीं. खप्पर और लकड़ी की ये झोपड़ियां जर्जर हो चुकी हैं और बरसात के मौसम में इसमें रहना दूभर हो जाता है. प्रशासन की ओर से झोपड़ी में रह रहे लोगों को पक्का मकान देने की बात की गई, नक्शा भी तैयार कर लिया गया, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी इसका नामों निशान नहीं दिख रहा. इसके साथ ही गांव में बने कई शौचालय जर्जर हैं, जिसकी वजह से लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं.

जिन्होंने सरकार पर भरोसा किया, उसका साथ दिया... लाल आतंक के खिलाफ आवाज उठाई 14 साल बाद उनके हालत देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिस्टम की कथनी और करनी में कितना फर्क है.

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