दंतेवाड़ा: जिला जेल दंतेवाड़ा, इसका नाम लेते ही 2007 का वो जेल ब्रेक कांड याद आ जाता है, जिसमें 299 कैदी जेल से भागने में कामयाब हुए थे. उन्हें पकड़ने में पुलिस आज भी असफल है, लेकिन इस बदनामी के कलंक को मिटाने के लिए जिला प्रशासन और जेल प्रबंधन कैदियों को डिजिटल साक्षरता अभियान से जोड़ रही है, ताकि यहां बंद कैदी शिक्षित हो सके और जब वे यहां से रिहा हो तो जेल की बदनामी के साथ नहीं बल्कि इसकी अच्छाई के साथ आगे बढ़े.
दंतेवाड़ा जेल ब्रेक के इस कलंक को धोने के लिए जेल प्रशासन ने कैदियों को शिक्षित करना शुरू कर दिया है. इस जेल में 50 प्रतिशत अनपढ़ कैदी हैं. जिन्हें शिक्षित करने और व्यस्त रखने के लिए जेल प्रशासन हर मुमकिन कोशिश कर रहा है. सबसे पहले इन बंदियों को a b c d सिखाई जाती है. जब वह पढ़ना सिख जाते हैं, तो कम्प्यूटर से बेसिक ज्ञान दिया जाता है. तीन महीने की पढ़ाई पूरी होने पर इनका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. सभी कैदी इस परीक्षा में बैठते हैं और पास होने पर उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाता है. जेल अधीक्षक जीएस सोरी बताते हैं कि कैदी अंगूठाछाप आते हैं और कम्प्यूटर में दक्ष हो कर जाते हैं.
2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित
वहीं जेल आरक्षक मोहन राव ने कहा कि इस प्रयास के लिए साल 2017 में दंतेवाड़ा जेल को नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया. इस प्रयास को और सफल बनाने के लिए तत्कालीन कलक्टर ने भी जेल प्रबंधन की काफी मदद की. जेल प्रवंधन को 10 कम्प्यूटर और 30 लैपटॉप दिए. अब इस जेल में एक भी बंदी निरक्षर नहीं हैं.