दंतेवाड़ा:इमली के लिए प्रसिद्ध बस्तर अंचल का दंतेवाड़ा. जहां हजारों लोगों की आजीविका इमली के कारोबार पर निर्भर है. आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की रोजी-रोटी इमली है. यहां वन विभाग ग्रामीणों को इससे आर्थिक लाभ भी दे रहा है.
इमली से किस्मत बनाती महिलाएं दंतेवाड़ा में वन विभाग ने स्वरोजगार योजना के तहत महिला स्व-सहायता समूह को रोजगार देने की पहल की है. जिसके तहत महिलाओं को विभिन्न रोजगार दिए जा रहे हैं. जिले में जिज्ञासा स्व-सहायता समूह की महिलाएं इमली प्रोसेसिंग के कार्य से जुड़ी हुई हैं. इससे महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं.
वन विभाग से मिल रही भरपूर मदद
वन विभाग स्व-सहायता समूह को इमली उपलब्ध करवाता है. जिसे महिलाएं पहले उसका छिलका उतारती हैं. छिली इमली को आंटी कहा जाता है. इसमें इमली के बीज और रेशे मौजूद होते हैं. इससे रेशा और बीज निकाला जाता है. वन विभाग की ओर से समूह को मशीन उपलब्ध करवाई गई है. जिसमें वे बीज और रेशा निकालकर उसकी चपाती बनाती हैं. इसक बाद उसकी पैकिंग की जाती है.
आर्थिक स्थिति हो रही मजबूत
पैकिंग करने के बाद यहां बने पैकेट को वन विभाग में समूह की महिलाएं जमा कराती हैं, जहां से इनकी ब्रिकी की जाती है. इमली से बीज निकालने के लिए महिलाओं को 5 रुपए प्रति किलो और पैकिंग के लिए 1 रुपए का भुगतान वन विभाग करता है. दिनभर में 5 से 10 किलो इमली को फोड़कर उसे पैकिंग करने का काम किया जाता है. इससे अच्छी-खासी आमदानी हो रही है.
पढ़ें-छत्तीसगढ़ की महिलाओं के लिए वरदान बनी 'बस्तरिया बूटी,' देखें खास रिपोर्ट
क्षेत्र में इमली की रिकॉर्ड तोड़ खरीदी
महिलाओं ने बताया कि इस काम से उनकी और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक हुई है. रोजगार मिलने से वे काफी खुश हैं. दंतेवाड़ा जिले में इस बार गर्मी के सीजन में लघु वनोपज इमली की रिकार्ड तोड़ खरीदी की है. जिले में समर्थन मूल्य पर 3.44 करोड़ रुपए की कुल 11 हजार क्विंटल इमली ग्रामीणों से खरीदी गई. पहली बार जिले में इतने बड़े पैमाने पर इमली की विभागीय खरीदी हो सकी है. इसके पहले ग्रामीण स्थानीय व्यापारियों और कोचियों को औने-पौने दाम पर इमली की बिक्री करते थे, जिसमें उन्हें प्रति किलो बमुश्किल 15 से 20 रुपए दाम ही मिल पाता था.
छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल इमली कारोबार के लिए शुमार हैं. खासकर बड़ी संख्या में आदिवासी परिवारों की इस पर आजीविका निर्भर है. एक अनुमान के मुताबिक बस्तर में हर साल लगभग पांच सौ करोड़ रुपये का इमली का कारोबार होता है. इन जिलों में आदिवासी इलाकों में पर्याप्त संख्या में इमली के पेड़ हैं.